सुप्रीम कोर्ट ने 10% EWS आरक्षण पर रोक से किया इंकार, विधेयक के परीक्षण का दिया भरोसा
नई दिल्ली: आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लिए 10% आरक्षण लागू करने से रोक को इंकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि “हम मामले की जांच करेंगे।” भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली और न्यायधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ इस मामले की सुनवाई चार हफ्ते में करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है और इस संबंध में चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है।
सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएँ दायर की गयी हैं। NGO ‘यूथ फ़ॉर इक्वेलिटी’ और राजनीतिक कार्यकर्ता तहसीन पूनावाला की याचिका संविधान संसोधन अधिनियम 2019 को चुनौती देती हैं।
याचिका में कहा गया है: “वर्तमान संशोधनों के अनुसार OBC और SC/ ST को आर्थिक आरक्षण के दायरे से बाहर करने का अनिवार्य रूप से अर्थ है कि केवल वे ही जो सामान्य वर्ग में गरीब हैं, आरक्षण का लाभ उठा सकते हैं। इस तथ्य के अनुसार प्रति वर्ष ₹8 लाख की आय वाले ही इसके अंतर्गत गरीब समझे जायेंगे। OBC और SC/ ST में कुलीन वर्ग ही बार-बार आरक्षण का लाभ उठाते है, इन वर्ग के गरीब वर्ग पूरी तरह आरक्षण से वंचित रहते हैं।”
इस बीच पूनावाला ने तर्क दिया है कि आरक्षण के लिए पिछड़ेपन को केवल “आर्थिक स्थिति” द्वारा परिभाषित नहीं किया जा सकता है। इससे पहले इस विधेयक का विरोध OBC, SC और ST संगठन कर चुके हैं।
संसद के दोनों सदनों ने शीतकालीन सत्र के दौरान संविधान संसोधन विधेयक 2019 पारित किया। इस विधेयक के तहत सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षा संस्थानों में आर्थिक रूप से सामान्य वर्ग के कमजोर वर्ग (EWS) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया गया।
अधिनियम के तहत जिन लोगों के परिवारों में सभी स्रोतों से ₹8 लाख रुपये तक की सकल वार्षिक आय है, वे आरक्षण का लाभ उठा सकते हैं। जिन परिवारों के पास पांच एकड़ से अधिक कृषि भूमि है, 1,000 वर्ग फुट से अधिक घर हैं, अधिसूचित नगरपालिका क्षेत्र में 100 से अधिक गज का प्लाट, या गैर-अधिसूचित नगरपालिका क्षेत्र में 200 से अधिक गज का प्लाट है वो इस आरक्षण का लाभ नहीं उठा सकता हैं।
तमिलनाडु की मुख्य विपक्षी पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) ने EWS विधेयक को चुनौती देते हुए मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर की है।
अपना कमेंट यहाँ डाले