चीनी आक्रामकता 2.0: पूर्वी लद्दाख़ में LAC पर 45 वर्षों में पहला घातक झड़प, PLA ने 20 भारतीय सैनिकों को मारा, 76 को किया घायल, 10 को बनाए बंदी 

Team Suno Neta Friday 19th of June 2020 10:21 PM
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एक उपग्रह छवि जो गालवान घाटी में चीनी सैन्य जमावड़ा को दिखाती है। (ट्विटर के जरिए 2020 प्लेनेट लैब्स का फोटो)

नई दिल्ली: भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख़ में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC)  के ऊपर तनाव ने सोमवार की रात एक घातक मोड़ ले लिया जब चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA)  के सैनिकों ने भारतीय सैनिकों की एक टुकड़ी पर पत्थरों, लोहे की छड़ों और अन्य भरी चीज़ो से हमला किया। इस हमले में एक कर्नल सहित 20 भारतीय सैनिकों को मौत हो गयी। सेना ने भारतीय तरफ घातक संख्या की पुष्टि की है।

हमले में 76 अन्य भारतीय सैनिक घायल हुए हैं जिनमें से 18 को लेह के सेना अस्पताल में और 58 को अन्य अस्पतालों में भर्ती कराया गया। भारतीय सेना के अनुसार, वे सभी स्थिर हालत में हैं।

द हिन्दू के एक रिपोर्ट के अनुसार, PLA ने 10 भारतीय सैनिकों को भी कैदियों बना लिया था, जिनमें एक लेफ्टिनेंट कर्नल और तीन मेजर शामिल थे। लगभग तीन दिनों तक उन्हें हिरासत में रखने के बाद गुरुवार शाम को उन्हें बिना किसी नुकसान के रिहा कर दिया गया।

मारे गए ज्यादातर भारतीय सेना के जवान 16 बिहार रेजिमेंट के थे। वीरगति को प्राप्त होने वाले में से यूनिट के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल संतोष बाबू भी शामिल थे। सेना ने कहा कि मृतक सैनिकों के सभी शवों को वापस लाया गया है।

कुछ भारतीय मीडिया सूत्रों ने असत्यापित और संदिग्ध स्रोतों का हवाला देते हुए दावा किया कि इस झड़प में चीनी पक्ष के “43” सैनिक हताहत हुए है। लेकिन न तो सेना, और न ही सरकार ने मरने वाले PLA सैनिक की संख्या का उल्लेख किया,  हालांकि सेना ने कहा कि दोनों पक्षों में सैनिक हताहत हुए हैं।

बीजिंग ने अपनी तरफ से किसी भी मौत की पुष्टि करने से इनकार कर दिया। परन्तु, ग्लोबल टाइम्स के प्रमुख संपादक हू ज़िजिन ने कहा कि उनकी समझ के अनुसार PLA में कुछ हताहत हुए हैं लेकिन संख्या की तुलना करके “आम लोगो के मन को उत्तेजित करने” से बचना चाहते हैं।

अक्टूबर 1975 के बाद 3,488 किलोमीटर LAC पर यह पहला घातक झड़प है। उस समय चार असम राइफल्स के जवानों को चीनी सीमा पर PLA ने घात लगाकर मार दिया था।

छह सप्ताह से अधिक समय से दोनों पक्षों के सैनिक वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ कम से कम दो स्थानों पर गतिरोध में लगे हुए हैं, जो कि 3,488 किमी की अनौपचारिक सीमा है। वे गलवान नदी और पैंगोंग-त्सो झील पर एक दूसरे का सामना कर रहे हैं जो 1962 के भारत-चीन सीमा युद्ध के शुरुआती झड़पों के स्थानों में से एक स्थान था।

लद्दाख़ में वीरगति को प्राप्त हुए भारतीय सैनिकों के नाम

भारतीय सेना ने बुधवार को पूर्वी लद्दाख़ की गलवान घाटी में चीन के साथ हिंसक झड़प में जान गंवाने वाले 20 सैन्यकर्मियों के नाम जारी किए। वो हैं:

  • कर्नल बिकुमल्ला संतोष बाबू
  • नायब सूबेदार नुदुरम सोरेन
  • नायब सूबेदार मनदीप सिंह
  • नायब सूबेदार (Dvr) सतनाम सिंह-गुरदासपुर
  • हवलदार (Gnr) के पलानी
  • हवलदार सुनील कुमार
  • हवलदार बिपुल रॉय
  • नाइक (NA) दीपक कुमार
  • सिपाही राजेश ओरंग
  • सिपाही कुंदन कुमार ओझा
  • सिपाही गणेश राम
  • सिपाही चंद्रकांता प्रधान
  • सिपाही अंकुश
  • सिपाही गुरबिंदर
  • सिपाही गुरतेज सिंह
  • सिपाही चंदन कुमार
  • सिपाही कुंदन कुमार
  • सिपाही अमन कुमार
  • सिपाही जय किशोर सिंह
  • सिपाही गणेश हांसदा

कर्नल बि संतोष बाबू

लद्दाख़ झड़प की कहानी

पूर्वी लद्दाख़ की गलवान घाटी में सोमवार रात हुई घातक घटना के कई तरह के संस्करण एवं विवरण हैं।

एक में भारतीय मीडिया ने अज्ञात स्रोतों का हवाला देते हुए कहा कि PLA के सैनिकों द्वारा झड़प की शुरुआत की गई थी। जब भारतीय सीमा के अंदर एक पेट्रोलिंग पॉइंट (गश्त बिंदु) के पास PLA के एक “अस्थायी पोस्ट” को हटाने के लिए गए, तब बिना किसी चेतावनी के PLA के सैनिकों ने कर्नल बी संतोष बाबू के नेतृत्व में भारतीय सैनिकों की छोटी टुकड़ी पर हमला किया।

इससे एक हिंसक झड़प शुरू हो गई जहां प्रतिद्वंद्वी सैनिकों ने एक-दूसरे पर पत्थरों, छड़ों, नुकीले तख्तों, इत्यादि से हमला किया, जो रात में कई घंटों तक चलता रहा। इस दौरान कुछ सैनिक चट्टानों से गलवान नदी के बर्फ जैसे ठन्डे पानी पर गिर गए। गलवान नदी जो समुद्र तल से 14,500 फीट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित है।

एक और संस्करण में फिर से अनाम स्रोतों का हवाला देते हुए मीडिया ने बताया कि कर्नल संतोष बाबू और उनकी टीम को, जो PLA के लोगों से बात करने के लिए निहत्थे चले गए थे, उन्हें घेर कर चीनी सैनिको ने हमला किया। जिन्होंने भागने की कोशिश की, उनका पीछा किया गया और उन्हें चट्टानों पर धकेल दिया गया।

सेना ने अपने बयान में कहा कि सैनिकों की मौत “स्टैंड-ऑफ लोकेशन पर ड्यूटी करते हुए झड़प के दौरान और ऊंचाई वाले इलाकों में शून्य से नीचे तापमान के संपर्क में आने से हुई ... जिसमे कुल मिलाकर 20 सैनिक मारे गए।”

भारतीय सेना ने कहा चीनी सैनिकों ने झड़प शुरू की। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने कहा कि भारतीय सैनिकों ने सोमवार को दो बार सीमा रेखा पार की और “चीनी कर्मियों को उकसाया और उन पर हमला किया, जिससे दोनों पक्षों में सीमा बलों के बीच गंभीर शारीरिक टकराव हुआ”।

भारतीय सैनिकों के ‘निहत्थे’ होने पर विवाद

गुरुवार को, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने सरकार पर हमला करते हुए पूछा, “शहीदों हुए निहत्थे भारतीय सैनिकों को भेजने के लिए कौन जिम्मेदार है?”

सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए एक वीडियो संदेश में गांधी ने कहा, “चीन ने निहत्थे भारतीय सैनिकों को मारकर एक बड़ा अपराध किया है। मैं पूछना चाहता हूं कि बिना हथियारों के खतरे की और इन बहादुरों को किसने भेजा और क्यों? इसके लिए कौन जिम्मेदार है?”

भारतीय सैनिकों के निहत्थे होने के आरोपों का जवाब देते हुए विदेशमंत्री एस जयशंकर ने ट्वीट किया कि भारतीय सैनिकों के पास हथियार थे। उन्होंने कहा, “सीमा पर तैनात सभी जवान हथियार लेकर चलते हैं. ख़ासकर पोस्ट छोड़ते समय भी उनके पास हथियार होते हैं. 15 जून को गलवान में तैनात जवानों के पास भी हथियार थे. लेकिन 1996 और 2005 में हुई भारत-चीन संधि के कारण लंबे समय से ये प्रक्रिया चली आ रही है कि फ़ेस-ऑफ़ के दौरान जवान आग्नेयास्त्रों का इस्तेमाल नहीं करते हैं.”

एक दूसरे के प्रति विश्वास निर्माण के उपायों पर 1996 के भारत-चीन समझौते के अनुच्छेद VI में कहा गया है: “सीमा पर दोनों देशों की ओर से गोलीबारी नहीं की जाएगी। वास्तविक नियंत्रण रेखा से दो किलोमीटर के भीतर किसी भी तरह के खतरनाक रसायनिक हथियार, बंदूक, विस्फोट की अनुमति नहीं होगी। इसका पालन दोनों देश करेंगे। यह प्रतिबंध छोटे हथियारों की फायरिंग रेंज में नियमित फायरिंग गतिविधियों के लिए लागू नहीं होगा।”

भारतीय थलसेना के उत्तरी कमान (नॉर्थेर्न कमांड) के पूर्व कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरचरणजीत सिंह पनाग (सेवानिवृत्त) ने ट्वीट किया कि “1996 का अनुच्छेद 6 सीमा प्रबंधन पर लागू होता है न कि सामरिक सैन्य स्थिति से निपटने के दौरान। जब सैनिकों के जीवन या पोस्ट/क्षेत्र की सुरक्षा को खतरा होता है, तो मौके पर कमांडर अपने साधन में सभी हथियारों का उपयोग कर सकता है, जिसमें तोपखाने भी शामिल हैं।”

इससे पहले हिंदुस्तान टाइम्स के साथ एक साक्षात्कार में, जनरल पनाग ने कहा कि 200 वर्षों से अधिक के इतिहास में भारतीय सेना के जवान इस तरह से नहीं मारे गए थे।

पूर्व-सेना अधिकारी और रक्षा विश्लेषक प्रवीण शावनी ने ट्वीट किया था कि उनके सूत्रों ने उन्हें बताया कि रक्षा स्टाफ के प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने सेना को पीएलए शिविर में निहत्थे जाने के लिए आदेश दिया था।

मोदी ने सर्वदलीय बैठक बुलाई

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारतीय सैनिकों का सर्वोच्च बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। उन्होंने बुधवार को राज्य के मुख्यमंत्रियों के साथ करोनोवायरस, Covid-19, की स्थिति पर चर्चा करने के लिए बैठक के दौरान देश में  यह बात कही। इसके बाद, प्रधानमंत्री कार्यालय ने घोषणा की कि मोदी लद्दाख़ में भारतीय और चीनी सेना के बीच घातक संघर्ष पर चर्चा करने के लिए सभी राजनीतिक दलों के नेताओं से मिलेंगे।

प्रधानमंत्री और विपक्षी नेताओं के बीच बैठक शुक्रवार को होगी।

इससे पहले, सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने कहा कि वह इस तरह एक समय में सरकार के साथ खड़ी थी। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एक वीडियो संदेश में कहा, “पिछले डेढ़ महीने में चीनी सेना लद्दाख़ में भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ करती रही है। आज जब (गाल्वन घाटी) घटना को लेकर देश बेहद गुस्से में है, प्रधानमंत्री को आगे आकर लोगों को सच्चाई बतानी चाहिए।”

उन्होंने फिर कहा कि उनकी पार्टी सेना, सैनिकों, सैनिकों के परिवारों और केंद्र सरकार के साथ खड़ी है।

भारत, चीन, रूस विदेश मंत्रियों के बैठक

इस बीच, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने पुष्टि की कि विदेश मंत्री एस जयशंकर 23 जून को एक वर्चुअल बैठक में अपने चीनी और रूसी समकक्षों – क्रमशः वांग यी और सर्गेई लावरोव – के साथ त्रिपक्षीय बैठक में भाग लेंगे।

बैठक लद्दाख़ में भारतीय सैनिकों की PLA की हत्या के आलोक में और महत्वपूर्ण हो जाती है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह एक स्वागत-योग्य विकास है क्योंकि इससे भारत और चीन के बीच तनाव को काम करने में मदद मिलेगी, जिससे सेना और PLA के बीच स्टैन्डॉर्फ समाप्त हो सकता है।


 
 

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