कठुआ केस में 3 आरोपियों को उम्रकैद की सज़ा, अन्य तीन को 5-5 साल की कैद और जुर्माना 

Amit Raj  Monday 10th of June 2019 05:33 PM
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मुख्य आरोपी सांझी राम (बाएं) और विशेष पुलिस अधिकारी दीपक खजुरिया उनमें से हैं जिन्हें आजीवन कारावास मिला।

नई दिल्ली: पठानकोट की एक अदालत ने खानाबदोश जनजाति से आठ साल की बच्ची की सनसनीखेज सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले पर सोमवार को सुनवाई करते हुए सात में से छह आरोपियों को दोषी करार दिया गया। मंदिर (जहां घटना हुई थी) के संरक्षक व ग्राम प्रधान सांझी राम, विशेष पुलिस अधिकारी दीपक खजूरिया और प्रवेश कुमार को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। 

एसपीओ सुरेन्द्र कुमार, सब इंस्पेक्टर आनंद दत्ता और हेड कांस्टेबल तिलक राज को पांच-पांच साल की सजा हुई। वहीं सांझी राम के बेटे विशाल को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया है।


इससे पहले, सात आरोपियों में से छह – सांझी राम, दीपक खजुरिया, प्रवेश कुमार, आनंद दत्ता, तिलक राज और सुरेंद्र वर्मा – को दोषी ठहराया गया था।


अन्य आरोपी विशाल जंगोत्रा, जो मुख्य आरोपी सांझी राम के बेटे हैं, को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया।

आजीवन कारावास पाने वाले तीनों में सांझी राम, दीपक खजुरिया और प्रवेश कुमार हैं । उन्हें रणबीर दंड संहिता (आरपीसी) की धारा 302 (हत्या), धारा 376 डी (सामूहिक बलात्कार) और धारा 120 बी (आपराधिक साजिश) के तहत दोषी ठहराया गया है।  उन्हें भी सामूहिक बलात्कार के लिए 25 साल की जेल और प्रत्येक को 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है।

पांच साल की जेल की सजा पाने वाले, पुलिस के एक उप-निरीक्षक आनंद दत्ता , तिलक राज जो कि एक पुलिस हेड कांस्टेबल और सुरेंद्र वर्मा जो कि एक विशेष पुलिस अधिकारी हैं। उन पर आरबीसी की धारा 201 (सबूतों को नष्ट करने) के तहत आरोप लगाए गए थे।

15 पन्नों की चार्जशीट के अनुसार, कठुआ जिले के रसाना गांव में पिछले साल 10 जनवरी को आठ साल की एक बच्ची का अपहरण कर लिया गया था। उसके बाद गांव के एक मंदिर में कथित तौर पर उसके साथ चार दिन दुष्कर्म किया गया और फिर लाठी से पीट कर हत्या कर दी गई

आरोप पत्र दाखिल होने के बाद बच्चे को जिस क्रूरता का सामना करना पड़ा था, उसके बारे में ब्योरा देने के दौरान मामले ने देश भर को स्तब्ध कर दिया।  

जब गिरफ्तारी की गई, तो हिंदू एकता मंच नामक एक दक्षिणपंथी समूह ने एक आरोपी के समर्थन में विरोध प्रदर्शन किया।  इस मामले में तत्कालीन पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार का हिस्सा रहे भाजपा के दो मंत्रियों, चौधरी लाल सिंह और चंद्र प्रकाश गंगा ने आरोपियों के समर्थन में निकाली गई रैली में हिस्सा लिया। बाद में यह मामला सत्तारूढ़ गठबंधन के सहयोगियों पीडीपी और भाजपा के बीच मामला विवाद का विषय बन गया। इन दोनों मंत्रियों को अपना पद छोड़ना पड़ा था।

कठुआ अदालत के वकीलों ने 9 अप्रैल को हंगामे के बीच क्राइम ब्रांच को आरोप दायर करने से रोक दिया था, सुप्रीम कोर्ट ने मामले को जम्मू और कश्मीर से बाहर स्थानांतरित करने का आदेश दिया था।

अदालत ने रणबीर दंड संहिता के तहत धारा 120-बी (आपराधिक साजिश), 302 (हत्या) और 376-डी (सामूहिक बलात्कार) सहित साक्ष्य नष्ट करने और 328 के तहत जहर देकर चोट पहुंचाने के लिए आरोप तय किए थे।  दो पुलिसकर्मियों - राज और दत्ता - को भी आरपीसी की धारा 161 (लोक सेवक द्वारा अवैध रूप से संतुष्टि लेना) के तहत आरोपित किया गया था।

यह अपराध कठुआ के रसाना में हुआ था, जो जम्मू और कश्मीर के जम्मू डिवीजन के अंतर्गत आता है। भारतीय अनुच्छेद संहिता, संविधान के अनुच्छेद 370 के कारण वहां लागू नहीं है।  राज्य में लागू दंड संहिता रणबीर दंड संहिता है, जो 1932 में लागू हुई थी। यह कोड डोगरा राजवंश के शासनकाल के दौरान लागू किया गया था जब रणबीर सिंह इसके शासक थे।


 
 

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