गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों को दिया अवैध विदेशियों के लिए न्यायाधिकरण स्थापित करने का अधिकार
नई दिल्ली: गृह मंत्रालय ने विदेशियों के लिए (न्यायाधिकरण) आदेश, 1964 में संशोधन किया है, और सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में जिला मजिस्ट्रेटों को अधिकार दिया है कि वे यह तय करने के लिए न्यायाधिकरण (फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल) स्थापित करें कि भारत में अवैध रूप से रहने वाला व्यक्ति विदेशी है या नहीं।
गृह मंत्रालय के आदेश के अनुसार सभी राज्य अब विदेशी ट्रिब्यूनल का गठन कर सकते हैं। सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में जिला मजिस्ट्रेटों को अधिकार दिया है कि वे यह तय करने के लिए ट्रिब्यूनल स्थापित करें कि भारत में अवैध रूप से रहने वाला व्यक्ति विदेशी है या नहीं।
31 जुलाई को NRC (नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर) की फाइनल सूची जारी की जाएगी, जिसे देखते हुए गृह मंत्रालय ने असम में करीब 1,000 अधिकरण स्थापित करने की मंजूरी दी है।
सुप्रीम कोर्ट से निर्देश के बाद रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया ने बीते साल 30 जुलाई को NRC का फाइनल ड्राफ्ट जारी किया था।
इसमें 25 मार्च 1971 के बाद पड़ोसी राज्य बांग्लादेश से अवैध रूप से असम आने वाले लोगों का नाम शामिल नहीं किया गया था। इस फाइनल ड्राफ्ट में करीबन 40 लाखों लोगों के नाम शामिल नहीं किए गए थे।
गृह मंत्रालय ने ये निर्देश विदेशी विषयक (अधिकरण) आदेश, 1964 में संशोधन करते हुए जारी किए हैं। जिसके तहत सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के जिला मजिस्ट्रेट को भारतीय सीमा में अवैध रूप से रह रहे विदेशी नागरिक पर निर्णय लेने के लिए अधिकरण स्थापित करने के अधिकार दिए हैं। इससे पहले अधिकरण स्थापित करने का अधिकार केवल केंद्र के पास था।
विदेशी अधिकरण अर्ध-न्यायिक निकाय होते हैं। ये नागरिकों की वैधता पर फैसला करते हैं। दूसरे राज्यों में विदेशी नागरिकों को पहले पुलिस गिरफ्तार करती है, जिसके बाद उन्हें पासपोर्ट एक्ट 1920 या विदेशियों विषयक अधिनियम, 1946 के तहत स्थानीय कोर्ट में पेश किया जाता है। इसके तहत आरोपी व्यक्ति को दोषी साबित होने पर तीन महीने से आठ साल तक की जेल हो सकती है। सजा खत्म करने के बाद व्यक्ति को जब तक उसका देश स्वीकार नहीं करता डिटेंशन सेंटर में रखा जाता है।
संशोधित अधिनियम, लोगों को ये शक्ति देता है कि आपत्ति होने पर वो अधिकरण में अपनी बात रख सकते हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ”पहले केवल राज्य प्रशासन के पास अधिकार था कि वो किसी फैसले खिलाफ अधिकरण जा सकता है। संशोधित अधिनियम के बाद अब अगर व्यक्ति फाइनल लिस्ट में अपना नाम नहीं पाता है तो उसके पास अधिकार है कि वो अधिकरण जा सकता है।”
इसके अलावा जिन लोगों ने फाइनल ड्राफ्ट में नाम शामिल नहीं होने के खिलाफ अर्जी नहीं दी है उन मामलों में संशोधित अधिनियम जिला अधिकारी को फैसला करने का अधिकार देता है।
एक अधिकारी के मुताबिक “नाम शामिल नहीं होने के खिलाफ जिन लोगों ने अर्जी नहीं दाखिल की है उन्हें एक और मौका दिया जाएगा। उन सभी लोगों को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए एक बार फिर सम्मन किया जाएगा।”
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