श्रीलंका सीरियल ब्लास्ट: अल्पसंख्यक असुरक्षित? हमले की ज़िम्मेदारी ISIS ने ली 

Shruti Dixit  Tuesday 23rd of April 2019 04:50 PM
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श्री लंका अटैक 

नई दिल्ली श्रीलंका में 3 गिरजाघरों और 3 होटलों में करीब एक साथ हुए 8 विस्फोटों में कम से कम 290 लोगों की मौत हो गई और 400 से ज्यादा लोग घायल हुए। आखिरकार इस हमले की जिम्मेदारी दुनिया का कुख्यात आतंकी संगठन ISIS ने ली है। श्रीलंका के इतिहास में यह सबसे भयानक हमलों में से एक है।

ISIS के मीडिया मुखपत्र, अमाक, ने मंगलवार को एक बयान में कहा कि हमले "इस्लामिक स्टेट लड़ाई" द्वारा किए गए हैं। टेलीग्राम ऐप पर आतंकी समूह के चैट रूम पर प्रसारित किए गए बयान में यह भी कहा गया है कि बम विस्फोटों ने ईसाइयों के साथ-साथ ISIS से लड़ने वाले गठबंधन के देशों के नागरिकों को भी निशाना बनाया। हालांकि, बयान में यह नहीं कहा गया है कि हमले करने वाले लोग सीधे ISIS से जुड़े थे या उस आतंकी गुट से प्रेरित थे।

पुलिस प्रवक्ता रूवन गुनासेखरा ने बताया कि ये धमाके स्थानीय समयानुसार आठ बजकर 45 मिनट पर ईस्टर प्रार्थना सभा के दौरान कोलंबो के सेंट एंथनी, पश्चिमी तटीय शहर नेगेंबो के सेंट सेबेस्टियन चर्च और बट्टिकलोवा के एक चर्च में हुए। वहीं तीन अन्य विस्फोट पांच सितारा होटलों – शंगरीला, द सिनामोन ग्रांड और द किंग्सबरी में हुए। होटल में हुए विस्फोट में घायल विदेशी और स्थानीय लोगों को कोलंबो जनरल हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया है।

बता दें कि श्रीलंका अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए जाना जाता है। 2018 में 20 लाख पर्यटक इस खूबसूरत देश में घूमने पहुंचे। हालांकि, श्रीलंका के खूबसूरत दामन पर लंबे समय से हिंसा के दाग भी रहे हैं। वैश्विक व्यापार के केंद्र में रहा श्रीलंका हमेशा से विविधता से भरा देश रहा है। बौद्ध श्रीलंका के मूल निवासी माने जाते हैं जो 100 ईसा पूर्व से यहां रह रहे हैं। हिंदू यहां कुछ दशकों बाद पहुंचे। अरब दुनिया के साथ व्यापार के जरिए मध्यकाल में मुस्लिम इस देश में पहुंचे और 16वीं सदी के यूरोपीय साम्राज्यवाद की शुरुआत में ईसाई भी आकर बस गए। श्रीलंका को 1948 में ब्रिटिश हुकूमत से आजादी मिली और 1972 में श्रीलंका गणराज्य बन गया।

वर्तमान में श्रीलंका में करीब 2.2 करोड़ की आबादी है। देश की 70 फीसदी आबादी बौद्ध है। यहां 10 फीसदी आबादी मुस्लिम, 12 फीसदी हिंदू और 6 फीसदी कैथोलिक है। रविवार को हुए हमले में करीब 3 चर्चों को निशाना बनाया गया। स्पष्ट बहुसंख्यक होने के बावजूद सिंहली बौद्ध राष्ट्रवादी लोगों के बीच यह डर पैदा कर रहे हैं कि देश में अल्पसंख्यकों, खासकर मुस्लिमों की आबादी और उनका प्रभाव बढ़ रहा है। 

श्रीलंका में वैसे तो बहुसंख्यक सिंहल समुदाय और अल्पसंख्यक तमिल के बीच ही संघर्ष रहा है लेकिन इस तनाव में एक अहम भूमिका बौद्ध अतिवाद ने भी अदा की। 1959 में एक बौद्ध भिक्षु ने देश के चौथे प्रधानमंत्री की हत्या कर दी थी क्योंकि उन्होंने देश के तमिल अल्पसंख्यकों को सीमित स्वायत्तता देने वाले एक समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए थे। 2018 में बौद्धों ने मुस्लिमों की दुकानों और घरों पर हमला बोल दिया, जिसमें करीब 5 लोगों की मौत हो गई थी। बता दें कि ज्यादातर श्रीलंकाई मुसलमान तमिल ही हैं और ज्यादातर तमिल हिंदू हैं।

ईसाई श्रीलंका की आबादी का 7 फीसदी ही हैं और उन्हें उनके धर्म की वजह से गृहयुद्ध के दौरान कभी निशाना नहीं बनाया गया लेकिन ईस्टर पर रविवार को हुए हमले ने इस परंपरा को भी तोड़ दिया। अगले महीने सरकार और अलगाववादी तमिलों के बीच संघर्ष के अंत की 10वीं वर्षगांठ होगी। तमिल टाइगर संगठन को एक वक्त दुनिया का सबसे खतरनाक आतंकी संगठन कहा जाने लगा था। करीब तीन दशकों तक तमिल टाइगर्स ने आत्मघाती हमले कराए, श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति और एक पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या तक करा दी। 2000 में देश के तीन-चौथाई इलाके में इनका नियंत्रण हो गया था और उन्होंने इसे अपना राज्य घोषित कर दिया था। 2009 से पहले तमिल टाइगर्स को रोकने का कोई रास्ता ही नजर नहीं आ रहा था. 2009 में श्रीलंका सेना ने इसका सफाया कर दिया लेकिन इस पर प्रभावित क्षेत्रों में मानवाधिकार उल्लंघन के गंभीर आरोप लगे. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, गृहयुद्ध में करीब 40,000 आम नागरिक मारे गए।

इससे इतर श्रीलंका पिछले कुछ वक्त से राजनीतिक तनाव को भी झेल रहा है। पिछले साल श्रीलंकाई प्रधानमंत्री को सत्ता से बेदखल करने की कोशिश की वजह से राजनीतिक संकट पैदा हो गया था। एक ही वक्त में श्रीलंका के दो घोषित प्रधानमंत्री हो गए थे। अक्टूबर महीने में राष्ट्रपति मैत्रिपाल सिरिसेना ने प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघ को सत्ता से बाहर करते हुए पूर्व राष्ट्रपति महिंद्रा राजपक्षे को नियुक्त कर दिया था। रिपोर्ट के मुताबिक, जून 2014 में एलुथगामा दंगे के बाद मुस्लिम विरोधी कैंपेन चलाए गए थे। कुछ बौद्ध समूहों ने आरोप लगाया था कि मुस्लिम जबरन धर्म परिवर्तन करा रहे हैं। 

2015 में सत्ता में आने के बाद राष्ट्रपति एम सिरेसेना ने कहा था कि वे मुस्लिम विरोधी हिंसा के मामलों की जांच करवाएंगे। हालांकि, बाद में कुछ खास नहीं हुआ। एक क्षेत्रीय विश्लेषक ने सीएनबीसी से कहा कि चुनाव से पहले अल्पसंख्यकों को फिर से अपना भविष्य असुरक्षित दिख रहा है क्योंकि राजनीतिक पार्टियां बौद्ध राष्ट्रवादी मतदाताओं को लुभाने की कोशिश करेंगी।

चर्च में प्रवेश करते हुए एक संदिग्ध आतंकी का CCTV फुटेज:


 
 

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