भूपेश सरकार ने पुलिस विभाग में बड़े फेरबदल करते हुए आईजी कल्लूरी को छत्‍तीसगढ़ में दी बड़ी जिम्मेदारी 

Team Suno Neta Friday 4th of January 2019 06:04 PM
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एस आर पी कल्‍लूरी

नई दिल्ली: छत्‍तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार ने बुधवार देर रात पुलिस विभाग में बड़े फेरबदल करते हुए दो रेंज के आईजी बदल दिए। रमन सरकार में बस्‍तर ज़िले के आईजी रहे एसआरपी कल्‍लूरी को मुख्‍यमंत्री भूपेश बघेल बड़ी जिम्‍मेदारी सौंपी है। कल्‍लूरी को एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) और इकानॉमिक ऑफेंस विंग (EOW) जैसे महत्वपूर्ण विभाग का आईजी बनाया गया है। कल्‍लूरी वही पुलिस अधिकारी हैं, जिन पर विपक्ष में रहते हुए भूपेश बघेल और कांग्रेस ने कई आरोप लगाए थे। यहां तक कि भूपेश बघेल ने कल्‍लूरी को बर्खास्‍त करने तक की मांग की थी।

कल्लूरी साल 1994 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं। गौरतलब है कि बस्तर में आईजी रहते हुए कल्लूरी काफी विवादों में रहे थे। मानवअधिकार कार्यकर्ताओं और आदिवासियों पर फर्जी मामले दर्ज कर उन्हें जेल में डालने के आरोप भी कल्लूरी पर लगे। विवाद बढ़ने के बाद तत्कालीन रमन सरकार ने उन्हें बस्तर से हटा कर पीएचक्यू में अटैच कर दिया था।

मार्च 2017 में तत्‍कालीन रमन सरकार ने आईपीएस कल्लूरी को एक ही दिन के भीतर तीन नोटिस थमा दिए थे। ये सभी नोटिस छत्तीसगढ़ के डीजीपी ए एन उपाध्याय की ओर से भेजे गए थे। पहले नोटिस में सोशल मीडिया पर की गई टिप्‍पणियों के बारे में कल्‍लूरी से जवाब तलब किया गया था। कल्लूरी के एक ट्वीट को टीवी चैनलों ने जमकर प्रसारित किया था, जिससे रमन सरकार को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा था। दूसरे नोटिस में पुलिस महानिदेशक ने कल्लूरी से कहा था कि वह उनसे अनुमति लेकर ही रायपुर मुख्यालय से बाहर जाएं। तीसरे नोटिस में कल्लूरी से जगदलपुर में टाटा कंपनी के कार्यक्रम में बतौर अतिथि शामिल होने पर सवाल किया गया था।

विवादों से अलग बस्‍तर आईजी के तौर पर कई सकारात्‍मक कार्यों की वजह से भी कल्‍लूरी का नाम काफी चर्चा में रहा। बस्तर रेंज में आईजी कल्लूरी ने कई नक्सल विरोधी अभियान चलाए। उनके कार्यकाल में कई नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया। कल्लूरी के बारे में बताया जाता है कि वह कई अभियानों में खुद सक्रिय रहे। नक्सल विरोधी अभियानों में वह न केवल शामिल हुएए बल्कि रात-रात भर पैदल भी चले। मीडिया में कई बार ऐसी रिपोर्ट सामने आईं, जिनमें कहा गया कि कल्‍लूरी अपने उच्च अधिकारियों की कम ही सुनते हैं और सीधे नेताओं से ही बात करते हैं।


 

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