नई शिक्षा नीति के त्रिभाषा मसौदे में सुधार किया गया, हिंदी की अनिवार्यता समाप्त  

Team Suno Neta Tuesday 4th of June 2019 11:34 AM
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नई शिक्षा निति डॉ कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन के अगवाई वाली समिति ने किया हैं।

नई दिल्ली: नई शिक्षा नीति में तीन भाषा का फॉर्मूला लागू करने के प्रस्ताव पर उठे विवाद के बाद सरकार ने इसे वापस ले लिया है। सरकार ने इस प्रस्ताव को वापस लेते हुए इस पर बदलाव किया है। नए ड्राफ्ट में हिंदी अनिवार्य होने वाली शर्त को हटा दिया गया है। तीन जून की सुबह केंद्र सरकार ने शिक्षा नीति के ड्राफ्ट में बदलाव की घोषणा की है।

नई शिक्षा नीति के संशोधित ड्राफ्ट में अनिवार्य की जगह ‘लचीलापन’ शब्द का उपयोग किया गया है। इसके अनुसार, अब मातृभाषा और स्कूली भाषा के अलावा तीसरी भाषा का चुनाव छात्र अपनी मर्जी से कर पाएंगे। इस तीसरी भाषा का चयन करने के लिए छात्र अपने शिक्षक और स्कूल की मदद ले सकता है।

तीन भाषाओं के अध्ययन की वकालत करते हुए संशोधित संस्करण का अब शीर्षक “त्रिभाषा फार्मूला में लचीलापन” है और इसमें छात्र के अध्ययन वाली भाषा को सटीक तौर पर नहीं बताया गया है। यह सामान्य रूप से बताता है कि छात्र के पास तीन भाषा पढ़ने का विकल्प होगा, जिसमें से एक भाषा साहित्यिक स्तर पर होगी। इससे पहले इसे “भाषाओं के पसंद में लचीलापन” शीर्षक दिया गया था जिसमें हिंदी और अंग्रेज़ी की अनिवार्यता के बाद एक क्षेत्रीय भाषा का चयन करने को कहा गया था।

HRD मंत्रालय की वेबसाइट पर अब उपलब्ध मसौदा नीति के संशोधित संस्करण में कहा गया है: “लचीलेपन के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए, जो छात्र तीन भाषाओं में से एक या दो में बदलाव करना चाहते हैं, वे ऐसा कक्षा 6 या 7 में कर सकते हैं। वहीं पहले के मसौदे की सिफारिशों में कहा गया था कि छात्र तीसरी भाषा का विकल्प चुन सकते हैं, जिसे वे कक्षा 6 में पढ़ना चाहते हैं। इन दो भाषाओं में गैर हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी व अंग्रेजी शामिल होगी।”

देश की नई शिक्षा नीति के मसौदे से अनिवार्य हिंदी शिक्षण के विवादास्पद प्रावधान को हटाने के केंद्र सरकार के फैसले का स्वागत करते हुए डीएमके ने कहा “कि इससे पता चलता है कि पार्टी संरक्षक दिवंगत एम करुणानिधि जिंदा हैं”। कर्नाटक के पूर्व CM एम. सिद्धरमैया ने कहा, “हमारी राय के खिलाफ कुछ भी नहीं किया जाना चाहिए। तीन भाषाओं की कोई जरूरत नहीं है। अंग्रेजी एवं कन्नड़ पहले से हैं, वे काफी हैं। कन्नड़ हमारी मातृ भाषा है, इसलिए प्रमुखता कन्नड़ को दी जानी चाहिए।”

गौरतलब है कि हिंदी भाषा की अनिवार्यता को लेकर दक्षिण भारतीय राज्यों ने तीखा विरोध किया था और कहा था कि यह हम पर हिंदी को थोपने जैसा है। तमिलनाडु में डीएमके और अन्य दलों ने नई शिक्षा नीति के मसौदे में त्रिभाषा फॉर्म्युले का विरोध किया था और आरोप लगाया था कि यह हिन्दी भाषा थोपने जैसा है।



 
 

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