गिरीश कर्नाड, फिल्म और साहित्य जगत के मशहूर व्यक्तित्व, का 81 साल की उम्र में निधन 

Amit Raj  Monday 10th of June 2019 11:31 AM
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गिरीश कर्नाड

नई दिल्ली: ज्ञानपीठ, पद्मश्री, व पद्मभूषण जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित, भारत के मशहूर समकालीन लेखक, अभिनेता, फ़िल्म-निर्देशक और नाटककार गिरीश कर्नाड का आज निधन हो गया। कर्नाड 81 वर्ष के थे। उनका निधन उनके बंगलुरु स्थित घर पर सोमवार को सुबह 6.30 बजे हुई। वे लंबे समय से बीमार थे, मौत की वजह मल्टिपल ऑर्गन फेल्योर बताया जा रहा है। गिरीश कर्नाड लंबे समय से बीमार चल रहे थे। पिछले कुछ महीनों से उनका इलाज चल रहा था।

कर्नाड देश के साहित्य, नाटक और फिल्म जगत में बड़ी हस्ती माने जाते रहे हैं। उनके द्वारा रचित हयवदन, तुगलक, तलेदंड, नागमंडल और ययाति जैसे नाटक बहुत लोकप्रिय हुए हैं और भारत की कई भाषाओं में इनका अनुवाद और मंचन होता आ रहा है। नाट्यकला के क्षेत्र में इब्राहीम अलकाजी, अरविंद गौड़ और प्रसन्ना जैसे बड़े निर्देशक इनके नाटकों का शानदार निर्देशन कर चुके हैं।

उनके निधन से पूरा कला जगत शोक में है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनके निधन पर शोक जताया है। राष्ट्रपति ने कहा कि कर्नाड के निधन से भारत का सांस्कृतिक जगत सूना हो गया है।

गिरीश कर्नाड का जन्म 19 मई 1938 को महाराष्ट्र के माथेरान में हुआ था, बचपन से ही वह नाटकों में काफी रूचि रखते थे और अपने स्कूल से ही अभिनय और थियेटर में अपना मंचन शुरू कर दिया था। गिरीश की प्रारंभिक स्कूली शिक्षा मराठी में ही संपन्न हुई थी। साल 1958 में उन्होंने कर्नाटक विश्वविद्यालय से गणित और सांख्यिकी में अपनी कला स्नातक की उपाधि प्राप्त की, सनतक की पढ़ाई के बाद इंग्लैंड जाकर ऑक्सफोर्ड में मैगडलेन में दर्शनशास्त्र, राजनीति और अर्थशास्त्र का अध्ययन किया और रोड्स स्कॉलर (1960–63) के रूप में दर्शनशास्त्र, राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र में मास्टर ऑफ आर्ट्स की डिग्री हासिल की। 1962–63 में कर्नाड को ऑक्सफोर्ड यूनियन का अध्यक्ष भी चुना गया।

मगर साहित्य की ओर उनका झुकाव हमेशा बना रहा। शायद इसीलिए गिरीश भारत दुबारा वापस लौट आए और अपने साहित्य के ज्ञान से क्षेत्रीय भाषाओं में कई फ़िल्में भी बनाईं और कई फिल्मों की स्क्रिप्ट भी लिखी। सबसे पहला नाटक उन्होंने कन्नड़ भाषा में लिखा जिसका इंग्लिश ट्रान्सलेशन भी खुद ही किया। गिरीश के कुछ फेमस ड्रामा में ययाति, तुगलक, हयवदन, अंजु मल्लिगे, अग्रिमतु माले, नागमंडल, अग्नि और बरखा जैसे फेमस ड्रामा हैं।

गिरीश को उनके तुगलक नाटक से बहुत प्रसिद्धि मिली और इसका कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद भी किया गया। एक बेहतरी राइटर के साथ गिरीश डायरेक्शन में भी माहिर थे। साल 1970 में कन्नड़ फ़िल्म 'संस्कार' से अपने फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत की जिसकी पटकथा उन्होंने ही लिखी थी। गिरीश ने कई हिन्दी फ़िल्मों में भी काम किया, जिसमें निशांत, मंथन, पुकार जैसी कल्ट फिल्में शामिल हैं। गिरीश कर्नाड ने छोटे परदे पर भी अनेक महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम और 'सुराजनामा' जैसे सीरियल पेश किए हैं।


गिरीश कर्नाड को 1992 में पद्म भूषण, 1974 में पद्म श्री,1972 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 1992 में कन्नड़ साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1994 में साहित्य अकादमी पुरस्कार और 1998 में उन्हें कालिदास सम्मान प्राप्त हुआ था। 1978 में आई फिल्म भूमिका के लिए गिरीश को नेशनल अवॉर्ड मिला था। उन्हें 1998 में साहित्य के प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी नवाजा गया था।

गिरीश कर्नाड के निधन पर राष्ट्रपति ने दुख जताते हुए कहा कि उनके निधन से हमारी सांस्कृतिक दुनिया निर्धन हो गई। राष्ट्रपति ने कर्नाड के परिजनों से सांत्वना जाहिर की।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि  गिरीश कर्नाड अलग अलग तरह के रोल के लिए हमेशा याद किए जाते रहेंगे। उनके कार्य आने वाले समय में भी उतने ही लोकप्रिय रहेंगे।

कांग्रेस के मीडिया प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला ने ट्वीट कर कहा कि गिरीश कर्नाड का निधन क्रिएटिविटी की दुनिया में अपूरणीय क्षति है जिसे कभी भरा नहीं जा सकता।

गिरीश कर्नाड परिवार में उनकी पत्नी डॉ सरस्वती गणपति और पुत्र रघु कर्नाड हैं। रघु एक पुरस्कृत पत्रकार हैं।


 

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