बचपन को संजो रहे है बिहार के ये दो समाजसेवी 

Amit Raj  Friday 17th of May 2019 08:20 AM
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बचपन -सोचकर ही एक सधी सी मुस्कान के साथ वो नटखट दिन याद आ जाते होंगे आपको। लेकिन क्या आज के बच्चों को भी ऐसी ही अनुभूति होगी? बचपन के दिन किसी भी व्यक्ति के जीवन के बड़े महत्वपूर्ण दिन होते हैं । बचपन में सभी व्यक्ति चिंतामुक्त जीवन जीते हैं ।खेल-कूद से बच्चे में ज्ञान आता है, वह शारीरिक रूप से स्वस्थ होता है और शक्ति अर्जित करता है. भावनात्मक सुदृढ़ता के लिए भी खेलों को ज़रूरी माना जाता है। पर अब कम्प्यूटर, विडियो गेम, टी.वी. या आई-फोन आ जाने के बाद बच्चा घर से बाहर जाना ही नहीं चाहता और इस तरह मेल-मिलाप के अभाव की वजह से उसमें परस्पर आत्मीयता और आपसी सामंजस्य का विकास थम गया है। दूसरे, इधर बच्चों पर या उनसे जुड़ी आपराधिक घटनाओं की वजह से अभिभावकों ने स्वयं बच्चों के बाहर जा कर खेलने पर रोक लगा दी है. पहले वह कम उम्र में ही बाहरी दुनिया के संपर्क में आ जाता था और समूह में काम करना भी सीखता था. अब वह खुद अलग-थलग पड़ता जा रहा है।

ऐसे में बच्चों के बचपन को , उनके गुल्ली डंडे, लुका-छुपी,ओक्का-बोक्का ,कौआ उड़ मैना उड़ जैसे खेल को पुनःजीवंत करने, उनके बचपने को ,उनकी हँसी-ठिठोली को फिर से लौटाने के दृढ़ संकल्प के साथ बच्चों को एक नई दिशा दे रही हैं सुप्रसिद्ध चित्रकार मीनाक्षी झा बनर्जी और डिज़ाइनर थिंकर रॉनी बनर्जी ।

2014 में पटना के इन दो सामाजिक कार्यकर्ताओं को अनुभूति हुई कि हमने समाज के लिए तो बहुत कुछ किया पर कभी हमने ये नहीं सोचा कि ‘बचपन’ के लिए हमने क्या किया? क्या बचपन संरक्षित है? क्या बचपन को संरक्षित करना हमारा उत्तरदायित्व नहीं? इसी सोच के साथ इन्होंने कहानीघर की स्थापना की।

कहानीघर-एक नई सोच है बचपन को खुशनुमा बनाने का , एक नया जुनून है बच्चे को उनका वास्तविक बचपन लौटाने का , एक नया संकल्प है बच्चों में सृजनात्मक क्षमता बढ़ाने का और एक सपना है हर घर में एक कहानी और हर घर को एक कहानीघर बनाने का।

कहानीघर की शुरुआत 14 नवम्बर को दादी नानी की कहानियों को बच्चो के सामने सुनने, बोलने, लिखने, पढने, देखने व समझने से हुई।फिर बच्चों के रुझान को देखते हुए उन्हें हर पारंपरिक कलाओं से अवगत कराने का सिलसिला चल पड़ा।बच्चों के प्रारंभिक विकास के लिए कहानीघर ने उन्हें वो शिक्षा देने की शुरुआत की जो आजकल के बच्चों को विद्यालय में नहीं मिल पाता। दादी-नानी की कहानी के माध्यम से नैतिक शिक्षा, गीत संगीत खेल कूद सबका यहाँ ऐसा वातावरण देखने को मिलता है जिससे आपको अपने बचपन की याद आ जाये और अकस्मात आपके मुख से निकल सकता है "काश मेरा बचपन फिर से लौट आता।"


इन सबका श्रेय जाता है सिर्फ और सिर्फ मीनाक्षी झा और उनके हमसफ़र रौनी बनर्जी को जिन्होंने बिना किसी की सहायता से समाज में ऐसी सकरात्मक पहल  की नींव रखी। इन्होने बच्चों को बचपन जीने की कला सिखाई है ताकि किसी भी अभिभावक को ये न लगे की उनके बच्चे का बचपन तकनीक की दुनिया में कहीं खो सा गया है ।बता दें की इस सेवा के लिए अभिभावकों से कोई भी शुल्क नहीं लिया जाता है । मीनाक्षी झा से बातचीत में उन्होंने बताया की शुरूआती दौर से ही उन्होंने बच्चों में इन क्रियाकलापों के माध्यम से बढती शिक्षा से उनमें (बच्चों में ) सकारात्मक विकास देखने को मिला जिससे प्रोत्साहित होकर उन्होंने समाज के हर बच्चों के लिए सप्ताह के सातों दिन कार्य करने का मन बनाया और आज इनका कहानीघर एक विद्यालयी रूप धारण कर चूका है।अपने संघर्षों के बारे में बात करते हुए मीनाक्षी झा ने कहा कि कहानीघर संघर्षों का भी कहानीघर है परन्तु बच्चों की खिलखिलाहट इस संघर्ष को ऊर्जा प्रदान करती है ।

बता दें कि इस कहानीघर को कोई भी सरकारी सहायता नहीं मिलती है ।मीनाक्षी झा और रौनी बनर्जी द्वारा कमाए गए रकम का 50%  हिस्सा निःस्वार्थ भाव से लगाते आ रहे है। इनका कहना है कि हमने कभी भी इस सोच के साथ कार्य किया ही नहीं कि सरकार द्वारा हमारी इस छोटी सी कुटिया ( कहानीघर ) को फण्ड या सहायता मिले। मीनाक्षी जी  ने कहा कि कहानीघर बच्चों की हरसंभव मदद कर रहा है उनकी हर छोटी कमियों को पूरा करने का प्रयत्न करता रहता है जिसकी उनको जरूरत है और उनका परिवार इसमें सक्षम नहीं है।और इन्होने आगे भी निरंतर इन जैसे बच्चो के लिए काम करते रहने का वादा किया। 2-3 बच्चों के साथ शुरुआत करने वाले इस कहानीघर की सफलता का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि फिलहाल इस संस्था से हज़ारो बच्चे जुड़ चुके हैं और यहां किसी भी बच्चे के आने जाने के लिए कोई रोक टोक नही है समाज के हर तबके के बच्चे यहां अपने बचपन को खुलकर जी रहे हैं। साथ ही अपने भविष्य को भी संवार रहे हैं।

ऐसे विरले ही होते है जो निःस्वार्थ भाव से समाज के उत्थान  में निरंतर प्रयत्नशील होते है इन्ही में ये दो महानुभाव  भी है जिन्होंने भविष्य को देखते हुए "देश के भविष्य" इन बच्चों का बचपन संवारने का काम कर रहे है । sunoneta.com इनके इस सराहनीय कदम के लिए इनको सलाम करता है ।

 

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