समाज सेवा की मिसाल बनी "साईं की रसोई"..
आज जब देश में महंगाई और गरीबी पर भाषणों का दौर चल रहा है तो इन सभी के बीच किसी ने शायद दुनियां के उस तबके के बारे में नहीं सोचा, जहाँ फटे-टूटे फूस के आंगन में भूख, भुखमरी और भिखारी एक साथ जन्म लेते हैं।अर्थशास्त्री चाहें कुछ भी कहें, लेकिन उनके खोखले सिद्धान्त जब इन कमज़ोर झोपडि़यों से टकराते हैं तो उनके बड़े-बड़े दावें खोखले नज़र आते हैं। आज के इस महंगाई के दौर में जब खाने-पीने के दाम आसमान छू रहे हो ऐसे में पटना की दो महिलाओं ने ज़िम्मेवारी उठायी है उन गरीबों को भोजन करवाने का जिनकी सम्पूर्ण आमदनी ही परिवार के पेट भरने में चली जाती है। ये दो महिलाएं है अमृता सिंह और पल्लवी सिंह जिनका पूरा सहयोग दिया है अशोक वर्मा जी ने।
इन लोगों ने गरीब परिवारों के दर्द को समझा और शुरू की ‘साईं की रसोई’ के नाम से एक छोटी सी पहल, वो पहल थी मात्र पांच रूपये में गरीबों को खाना खिलाना। वो पांच रुपये देने की भी बाध्यता यहां नहीं है ये 5 रुपये इसलिए लिए जाते है ताकि भोजन करने वाले को ऐसा न लगे की उन्हें मूफ्त में भीख के तौर पर खिलाया जा रहा है ऐसा नहीं है कि इसमें मिलने वाले भोजन की गुणवत्ता में कोई कमी होती है बल्कि ऐसा स्वादिष्ट भोजन लोगों को उनके मां के हाथ से बने भोजन की याद दिला देता है और हो भी क्यों न इनकी रसोई में कोई बाहरी लोग भोजन तैयार नहीं करते। यहां ये स्वयं भोजन तैयार करते हैं। इनके प्यार से भरी रोटी, और तड़के में साईं कृपा का ऐसा फोरन लगाया जाता है जिससे पेट ही नहीं दिल भी तृप्त हो जाता है इनके भोजन का स्वाद अगर आपको चखना हो तो PMCH के प्रांगण में शाम 6 से 8 बजे के बीच जाकर चख सकते है । बिना कोई रोक-टोक के निःस्वार्थ भाव से भोजन बनाकर लोगों को खिलाना प्रशंसनीय है । अनेक तरह की कठिनाइयों ले बावजूद शुरुआत से आज तक ये महिलाएं करीब 60000 लोगों को अपने हाथों से भोजन करा चुकी है। प्रतिदिन ये 200 लोगों को खाना खिलाने का काम करती है। बिना कोई सरकारी सहायता लिए साईं की रसोई ने पटना में एक अलग पहचान बनाई है। लोगों का रुझान अब इसके प्रति बढ़ रहा है लोग स्वतः इसमें हिस्सा ले रहे हैं। अपने जन्मदिवस, सालगिरह आदि शुभवसरों पर लोग अपने तरफ से भोजन कराने की इच्छा जता रहे है । धीरे-धीरे इनका कारवां बढ़ता जा रहा हैं।
ये अपनी अनोखी पहल के माध्यम से यह सुनिश्चित कर रहे है कि क्षेत्र में कोई भी व्यक्ति गरीबी के चलते भूखा न सोए और इस प्रकार से यह लोग ‘‘भूख के खिलाफ जंग’’ का आगाज किये हुए हैं। साईं की रसोई प्रतिदिन जरूरतमंदों और भूखों को घर के पके हुए भोजन के स्वाद से रूबरू करवाता है। एक समय का भोजन इंसान को कुछ भी करने पर मजबूर कर देती है, वो रोटी जिसके लिए इंसान दर दर भटकता फिरता है, वो रोटी जो इंसान को इंसानियत तक छोड़ने में मजबूर कर देती है।उस रोटी को इनतक पहुंचाने का काम कर रही है ये 'साईं की रसोई'। इनकी 'साईं की रसोई' न तो किसी धर्म विशेष के लोगों का काम है और न ही किसी धार्मिक गुरुओं का। यह बेडा उठाया है पटना की इन मध्यमवर्गीय परिवार की महिलाओं ने जिन्हे सिर्फ इंसानियत और सिर्फ इंसानियत से मतलब है। वो खाना देते वक्त ये नहीं देखते के लेने वाले ने सर पर टोपी पहन रखी है या गले में माला, उस औरत के माथे पर सिन्दूर था या उसके सर पर दुपट्टा, उस बच्चे के हाथ में भगवान कृष्ण की मूरत है या हरा झंडा! वो देखते हैं तो सिर्फ इतना की उस इंसान ने कुछ खाया या नहीं, उस औरत ने जो कमाया अपने बच्चों को खिलाया और खुद खाली पेट रह गयी, उस बच्चे ने बिलख-बिलख कर अपनी माँ से खाना माँगा लेकिन वो माँ कहाँ से उसे लेकर कुछ दे जिसके घर में एक वक्त की रोटी तक नहीं। यह सब सोचकर हम बस मायूस हो सकते है लेकिन इन महिलाओं ने मायूस ना होकर इनके लिए कुछ करने की ठानी जो आज मिसाल बन चूका है।
आज जब नारी सशक्तिकरण का चारों तरफ उद्घोष किया जा रहा है,नारी को सशक्त करने की बात की जा रही है तब ये महिलाएं अपने इस कार्य से इस बात को साबित कर रही है की नारी तो पहले से ही सशक्त थी ,सशक्त हैं और सशक्त रहेंगी। अब इन महिलाओं ने समाज को सशक्त करने की ठानी हैं जो अन्य लोगों के लिए प्रेरणीय है।
अपना कमेंट यहाँ डाले