नरक में छोड़ न आना अपनी माँ को.. 

Amit Raj  Sunday 12th of May 2019 03:00 PM
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वृदाश्रम में 70 साल की विमला अपनी सूनी आंखों से अपने बेटे का इंतजार कर रही हैं। विमला को लग रहा था उनका बेटा आएगा और उनके पास बैठकर उनके हालचाल पूछेगा, लेकिन कई महीनों से न तो उनका बेटा आया और न ही कोई फोन। बेटा सरकारी नौकरी में अधिकारी है। विमला वृद्धाश्रम में अपने पति के साथ रहती हैं। पति सरकारी नौकरी में थे, इसलिए उन्हे पेंशन मिलती है। इसी पेंशन के भरोसे वे अपनी जिंदगी के आखिरी पड़ाव को वृद्धाश्रम में गुजार रहे हैं। विमला ने बताया कि‍ जब उन्‍हें साथ की जरूरत है तो वे और उनके पति‍ अकेलेपन को महसूस करते हैं। इतना कह कर उनके आंख की पलकें भींग जाती हैं। वहीं,इसी वृद्धाश्रम में रहने वाली ममता का कहना है कि बेटे-बेटी कॅरियर बनाने के लिए अब दूर-दूर जाने लगे। मां-बाप से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण उनका कॅरियर हो गया है। वे बताते हैं कि‍ युवा अब विदेश में नौकरी करने जा रहे हैं। ऐसे में उन्हें लगता है कि घर पर उनकी देखभाल कौन करेगा तो वृद्दाश्रम में शिफ्ट कर देते हैं। थोड़े दिनों तक हालचाल लेने आते हैं। इसके बाद आना भी बंद हो जाता है। कुछ दि‍न फोन पर बातें होती हैं और फिर वो भी बंद हो जाता है। अब तो बस उन्‍हें देखने के लि‍ए आंखें तरस जाती हैं।

कुछ ऐसा ही हाल हर शहर के हर वृद्धाश्रम का है जहां ढलती उम्र के साथ ,झुर्रियों को अपने चेहरे पर समेटे हए टकटकी निगाहों से दरवाजे की ओर झांकती माँ को उस समय का इंतज़ार है जब बेटा आकर कहे - आ अब लौट चलें ।

पर ऐसा सिर्फ रील लाइफ में होता है रियल लाइफ में नहीं । एक बार वृद्धाश्रम का चेहरा देखने के बाद उनको देखने के लिए कोई नहीं आता। आज मातृ दिवस है हर कोई सोशल मीडिया पर एक्टिव है। माँ के संग अपनी तस्वीरों का साझा कर रहे है। आज उनके बच्चे भी अपनी माँ को मातृ दिवस की बधाई दे रहे होंगे जिन्होंने खुद अपनी माँ या सास को वृद्धाश्रम छोड़ आये होंगे। 

क्या कहती है माँ वृद्धाश्रम से

 

हाल ही मैं एक निजी अखबार में नोएडा से एक खबर प्रकाशित हुई थी कि 80 साल की उम्र में सोना देवी नाम की एक बुजुर्ग महिला को उनके 2 बेटे और बहू ने मारपीट कर घर से निकाल दिया था। बस में भटकते हुए वह 10 फरवरी को नोएडा पहुंच गईं। यहां प्रशासन, अस्पताल से लेकर समाजसेवियों ने उनकी मदद के लिए हर मुमकिन कोशिश की। फिर उन्हें दिल्ली के 'अपना घर' वृद्धाश्रम भेज दिया गया। वहां जाने से पहले उनसे दोनों बेटों के खिलाफ कार्रवाई की बात कही गई, तो सोना देवी ने कहा कि बेटों से कुछ नहीं कहना।

कुछ दिन पहले सोना देवी सेक्टर-31 में एक मंदिर के बाहर घायल हालत में मिलीं थी। वहां तैनात एक गार्ड ने सबसे पहले उनकी मदद की। उन्हें सर्द रात में कंबल और कुछ गर्म कपड़े दिए। इसके बाद प्रशासन ने महिला को सेक्टर-30 स्थित जिला अस्पताल में भर्ती कराया। निजि अखबार  में सोना देवी के बारे में पढ़कर शहर के कुछ समाजसेवी उनके पास अस्पताल पहुंच गए। इसके बाद भी वे रोजाना उनका हालचाल लेते रहे। धीरे-धीरे उनकी हालत सुधरने लगी। सोना देवी को एक ठिकाना मिल सके इसलिए दिल्ली के एक वृद्धाश्रम में बात की गई। सेक्टर-100 आरडब्ल्यूए के अध्यक्ष पवन यादव ने उन्हें दिल्ली के अपना घर वृद्धाश्रम में भर्ती करा दिया। वृद्धाश्रम जाने से पहले सोना देवी से उनके बेटों के खिलाफ कार्रवाई करने की बात कही गई, तो उन्होंने इससे साफ इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि वह नहीं चाहती उनके दोनों बेटों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। सच कहा है किसी ने कि-

'लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती, बस एक मां ही है जो कभी खफा नहीं होती।' 

फिर हमारे पास ऐसे क्या बेबसी होती है जो बुढ़ापे की लाठी बनने की जगह लाठी दिखा देते हैं? हमारी सभ्यता और संस्कृति का आज पूरा विश्व सम्मान करता है। परंतु हम अपनी संस्कृति को अपने पैरों से कुचल रहे है। यह सही है कि भाग-दौड़ की ज़िंदगी में हमारे पास समय कम है लेकिन ऐसा भी नही है कि जिस माँ ने हमें-आपको 9 महीने असह्य कष्ट से अपने पेट में रखा उनको हम अपनी ज़िन्दगी के चंद समय नही दे सकते । 

आज भारत उन देशों की सूची में अपना नाम दर्ज करवा जहां तेज़ी से वृद्धाश्रमों की संख्या बढ़ रही है और उस से भी तेजी से वृद्धाश्रम में वृद्धों की संख्या । 

सरकार की अनदेखी

परिवार वालों की अनदेखी के साथ-साथ वृद्ध आश्रम में रहने वाले बुजुर्गों को सरकार की अनदेखी का भी सामना करना पड़ रहा है। वृद्धों को ठीक से खाना नहीं मिलता, दवा नहीं मिलती और आश्रम में रहने वाले वृद्धों को ही कर्मचारी बना लिया गया। वृद्धाश्रम में रहने वाले बुजुर्ग चिंता और डिप्रेशन में मानसिक रोगी बनते जा रहे है जिसे कोई देखने वाला नहीं है। यही नहीं कहीं-कहीं भीख मांगने वालों को भी आश्रम में रख लिया गया है जो रात में रोजाना नशीली पदार्थों का सेवन करते  हैं ऐसे में वृद्धाश्रम कोई नरक से कम नहीं है। सरकार को भी उनसे कोई फायदा नहीं दिखता जिस कारण इनकी लगातार अनदेखी होते रही है। 

आज मदर्स डे पर पर माँ को फूलों से सजाने वालों से निवेदन यही है कि कल उस माँ को वृद्धाश्रम ना छोड़ आना

 

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