एक झलक पटना साहिब क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार "शत्रुघ्न सिन्हा" की ..
कहा जाता है की व्यक्ति को अपने दिल की बात स्वतंत्र रूप से किसी के सामने कह देने से दिल का बोझ हल्का हो जाता है। यह तर्क हमारा नहीं है दुनिया भर के तमाम वैज्ञानिकों का ये मानना है । अब अगर इसमें कोई नाराज़ हो जाता है तो इसमें उस भले इंसान का क्या कसूर जिसे अपने दिल की बात लोगों तक बेख़ौफ़ होकर पहुंचाने की आदत हो। अभी भारत में लोकसभा चुनाव हो रहा है और बिहार के एक शख्स को इसी बेख़ौफ़ आवाज़ के लिए एक राजनैतिक पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया।
जी हाँ हम बात कर रहे है बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा की जो अपनी बेबाक बोल के लिए मशहूर हैं। अपनी जिंदगी को खूलकर जीने वाले, पटना साहिब क्षेत्र से सांसद और अभिनेता से नेता बने शत्रुघ्न सिन्हा इस बार फिर एक बार पटना साहिब क्षेत्र से चुनावी अखाड़े में है। पिछली बार भाजपा के तरफ से चुनाव लड़ने वाले 'शत्रु' इस बार कांग्रेस का हाथ थाम चुके है जबकि उनके सामने कभी उनके दोस्त रहे भाजपा पार्टी के कद्दावर नेता रविशंकर प्रसाद है। ऐसे में यहाँ की राजनीति क्या रुख अपनाती है देखना दिलचस्प होगा। पिछले लेख में हमने रविशंकर जी और उनके द्वार किये गए कार्यों के बारे में आपको अवगत करवाया था। आज हम बिहारी बाबू और उनके द्वारा किये गए कार्यों के बारे में चर्चा करेंगे.....
प्रसिद्ध अभिनेता और पटना के वर्तमान सांसद शत्रुघ्न सिन्हा का जन्म 15 जुलाई 1946 को बिहार के पटना में हुआ था। सिन्हा पटना साइंस कॉलेज से स्नातक हैं। अपनी शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने मुंबई फ़िल्म उद्योग की ओर रुख किया और यहां सफलता प्राप्त की। सिन्हा हिन्दी फ़िल्मों के जाने माने अभिनेता हैं, उन्होंने लगभग तीन दशकों तक हिन्दी फ़िल्मों के लिए अभिनय किया। शत्रुघ्न सिन्हा ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1992 में की, नई दिल्ली लोकसभा सीट से राजेश खन्ना के खिलाफ़। यहां उपचुनाव हो रहे थे। लालकृष्ण आडवाणी ने गांधीनगर और नई दिल्ली दोनों सीटें जीती थीं। उन्होंने गांधी नगर की सीट रख कर, नई दिल्ली की छोड़ दी। उनकी जगह शत्रुघ्न सिन्हा को राजेश खन्ना के खिलाफ़ उतारा गया ।इस उपचुनाव में राजेश खन्ना ने शत्रुघ्न सिन्हा को करीब 25,000 वोटों से हराया। जीत के बावजूद राजेश खन्ना के दिल से शत्रुघ्न सिन्हा के लिए नाराज़गी नहीं गई और उसके बाद उन्होंने कभी शत्रुघ्न सिन्हा से बात नहीं की। शत्रुघ्न सिन्हा ने फिर से दोस्ती की काफी कोशिश की, लेकिन ये मुमकिन न हो सका। राजेश खन्ना की 2012 में हुई मौत तक उनकी बात बिगड़ी ही रही।
अपनी वाणी से लोगों को 'खामोश' करने वाले एक्टर से नेता बने शत्रुघ्न सिन्हा 16वीं लोकसभा में पूरी तरह से खामोश रहे। उन्होंने पिछले पांच साल में लोकसभा में एक भी सवाल नहीं पूछा और न ही किसी चर्चा में हिस्सा लिया। इतना ही नहीं, उन्होंने इस दौरान सदन के पटल पर कोई प्राइवेट मेंबर बिल भी नहीं रखा। हालांकि सांसद निधि से खर्च करने के मामले में उन्होंने गजब का रिकॉर्ड बनाया। बीते 5 वर्षों में सांसद निधि खर्च करने के मामले में शत्रुघ्न सिन्हा बाकी सांसदों से कहीं आगे हैं। साल 2014 से लेकर 2019 तक लोकसभा में शत्रुघ्न सिन्हा ने भले ही एक भी सवाल नहीं पूछा हो, लेकिन सदन से बाहर अपनी पुरानी पार्टी बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सवाल करते रहे हैं।
राजनीति और कला क्षेत्र के अतिरिक्त सिन्हा सामाजिक संस्थाओं से भी जुड़े हुए हैं। वे लोकनायक जयप्रकाश नारायण के कार्यों से खासे प्रभावित रहे हैं। पटना साहिब की जनता के बीच शत्रुघ्न सिन्हा भले ही 5 सालों में कम दिखे हों या ना दिखे हों लिकिन पॉपुलैरिटी के मामले में ये सभी नेताओं को पीछे छोड़ देते हैं .आज भले ही भारतीय जनता पार्टी इस क्षेत्र में किये गए कार्य को अपना कार्य बता रही हो पर इस बात को वो भी इनकार नहीं कर सकती कि जब ये कार्य हो रहे थे तो सांसद बिहारी बाबू ही थे तो कार्यों के लिए श्रेय जाना लाज़मी है ।
राजेश खन्ना के खिलाफ खड़े होकर और हार का सामना करने के बाद शत्रुघ्न सिन्हा ने एक इंटरव्यू में कहा था कि अपने दोस्त राजेश खन्ना के खिलाफ़ चुनाव लड़ना उनकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी भूल थी। आज 27 वर्ष बाद पुनःशत्रुघ्न सिन्हा अपने एक पुराने दोस्त के खिलाफ मैदान में है। अब देखना ये होगा की ये शत्रुघ्न सिन्हा की दूसरी भूल होगी या वक़्त के तकाजे को देखते हुए उठाया गया बेहतरीन कदम।
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