क्यों किया परशुराम ने क्षत्रियों का संहार ...? 

Amit Raj  Monday 6th of May 2019 07:54 PM
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हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार परशुराम भगवान विष्णु के प्रमुख अवतारों में से एक थे। शास्त्रों के अनुसार भगवान परशुराम का जन्म वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हुआ था। प्रतिवर्ष भगवान परशुराम की जयंती हिंदू धर्मावलंबियों द्वारा बड़ी धूम-धाम से मनाई जाती है। इस बार परशुराम जयंती 7 मई, मंगलवार को है।

कौन थे परशुराम? कहाँ हुआ था जन्म?

भगवान परशुराम के जन्म के संबंध में दो कथाएं प्रचलित हैं। हरिवंशपुराण के अनुसार उन्हीं में से एक कथा इस प्रकार है-

प्राचीन समय में महिष्मती नगरी पर शक्तिशाली हैययवंशी क्षत्रिय कार्तवीर्य अर्जुन(सहस्त्रबाहु) का शासन था। वह बहुत अभिमानी था और अत्याचारी भी। एक बार अग्निदेव ने उससे भोजन कराने का आग्रह किया। तब सहस्त्रबाहु ने घमंड में आकर कहा कि आप जहां से चाहें, भोजन प्राप्त कर सकते हैं, सभी ओर मेरा ही राज है। तब अग्निदेव ने वनों को जलाना शुरु किया। एक वन में ऋषि आपव तपस्या कर रहे थे। अग्नि ने उनके आश्रम को भी जला डाला।

इससे क्रोधित होकर ऋषि ने सहस्त्रबाहु को श्राप दिया कि एक दिन भगवान विष्णु, परशुराम के रूप में जन्म लेंगे और न सिर्फ सहस्त्रबाहु का नहीं बल्कि समस्त क्षत्रियों का सर्वनाश करेंगे। इसी श्राप के फलस्वरूप भगवान विष्णु ने भार्गव कुल में महर्षि जमदग्नि के पांचवें पुत्र के रूप में जन्म लिया।


दूसरी कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक गाधि नाम के राजा थे । उनकी एक अत्यंत ही रूपवती कन्या सत्यवती थी । राजा अपनी पुत्री का विवाह एक अत्यंत ही विद्वान पुरुष से करना चाहते थे । इसलिए राजा ने भृगु ऋषि के पुत्र के साथ सत्यवती का विवाह सुनिश्चित किया । इस मंगल अवसर पर भृगु ऋषि अपनी पुत्रवधू को आशीर्वाद देने आये । आशीर्वाद स्वरुप उन्होंने सत्यवती को कोई भी वरदान मांगने को कहा ।इस पर सत्यवती ने अपनी माता को एक यशस्वी पुत्र प्राप्त हो ऐसा वरदान माँगा । तब ऋषि ने सत्यवती को दो पात्र दिए और कहा इनमे से एक अपनी माता को दे देना और एक का सेवन खुद करना । पर सत्यवती की माता ने दोनों पात्रों की अदला बदली कर दी । इस वजह से सत्यवती को ब्राह्मण पुत्र की प्राप्ति तो होती पर उसका आचरण क्षत्रियों जैसा होता ।ऋषि भृगु ने ये बात सत्यवती को बताई तब सत्यवती ने ऋषि से निवेदन किया की वो उन्हें ऐसा वरदान दे की उनका पुत्र ब्राह्मण जैसा आचरण करे पर उनका पौत्र क्षत्रिय जैसा आचरण करे ।ऋषि ने सत्यवती की बात मान ली और आगे चलकर भविष्य में सत्यवती को जमदग्नि पुत्र रूप में और परशुराम पौत्र रूप में प्राप्त हुए।


कहाँ हुआ था जन्म

भगवान परशुराम किसी समाज विशेष के आदर्श नहीं है। वे संपूर्ण हिन्दू समाज के हैं और वे चिरंजीवी हैं। उन्हें राम के काल में भी देखा गया और कृष्ण के काल में भी। उन्होंने ही भगवान श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र उपलब्ध कराया था। कहते हैं कि वे कलिकाल के अंत में उपस्थित होंगे। ऐसा माना जाता है कि वे कल्प के अंत तक धरती पर ही तपस्यारत रहेंगे। पौराणिक कथा में वर्णित है कि महेंद्रगिरि पर्वत भगवान परशुराम की तप की जगह थी और अंतत: वह उसी पर्वत पर कल्पांत तक के लिए तपस्यारत होने के लिए चले गए थे।

मान्यता है कि कलयुग में भी ऐसे 8 चिरंजीव देवता और महापुरुष हैं जो जीवित हैं। इन्हीं 8 महापुरषों में एक भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम हैं, जिनती जयंती अक्षय तृतीया के दिन मनाई जाती है। कहा जाता है कि भगवान शिव के परमभक्त परशुराम न्याय के देवता हैं, जिन्होंने 21 बार इस धरती को क्षत्रिय विहीन किया था। इतना ही नहीं इन्होंने क्रोध में भगवान गणेश को भी नहीं बख्शा था।


परशुराम ने क्यों किया था क्षत्रियों का विनाश


परशुराम ने अपने माता-पिता के अपमान का बदला लेने के लिए 21 बार इस धरती को क्षत्रिय विहीन कर दिया था। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि हैहय वंश के राजा सहस्त्रार्जुन अपने बल और घमंड की वजह से ब्राह्राणों और ऋषियों पर अत्याचार करते जा रहा था। एक बार सहस्त्रार्जुन अपनी पूरी सेना समेत भगवान परशुराम के पिता जमदग्रि मुनी के आश्रम पहुंच गया। मुनि ने कामधेनु गाय के दूध से पूरी सेना का आदर से स्वागत किया लेकिन चमत्कारी कामधेनु को उसने अपने बल का प्रयोग कर बलपूर्वक छीन लिया। उसके बाद जब यह बात परशुराम को पता चली तो उन्होंने सहस्त्रार्जुन को मार डाला। उसके बाद सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने बदला लेने के लिए परशुराम के पिता का वध कर दिया और माता-पिता के वियोग में चिता पर सती हो गईं। इसके बाद पिता के शरीर पर 21 घाव को देखते हुए परशुराम ने शपथ ली थी कि वह इस धरती से समस्त क्षत्रिय वंशों का संहार कर देंगे। इसके बाद पूरे 21 बार उन्होंने पृथ्वी से क्षत्रियों का विनाश कर अपनी प्रतिज्ञा पूरी की।

भगवान गणेश के दांत क्यों तोड़े


जानकारों की मानें तो एक बार परशुराम भगवान शिव के दर्शन करने के लिए कैलाश पर्वत पहुंचे लेकिन भगवान गणेश ने उन्हें मिलने से इनकार कर दिया। इस बात पर परशुराम को क्रोध आ गया और उन्होंने अपने फरसे से भगवान गणेश का एक दांत तोड़ दिया था। इस वजह से भगवान गणेश एकदंत भी कहा जाता है।

अक्षय तृतीया के महत्व


हिन्‍दू धर्म में अक्षय तृतीया का बड़ा महत्‍व है. इस दिन सोना खरीदने की प्रथा है। माना जाता है कि अक्षय तृतीया के दिन सौभाग्य और शुभ फल की प्राप्ति होती है. इस दिन जो भी काम किया जाता है उसका परिणाम शुभ होता है।

अक्षय तृतीया का शुभ मुहूर्त 
इस मुहूर्त में सोना खरीदना बहुत शुभ माना जाता है.
7 मई - सुबह 06:26 से रात 11:47 तक

अक्षय तृतीया की पूजन व‍िध‍ि 
1. अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करना शुभ माना जाता है.
2. कुछ लोग इस दिन व्रत भी रखते हैं.
3. सुबह उठकर स्नान करने के बाद पीले कपड़े पहनते हैं.
4. विष्णु जी को गंगाजल से नहलाकर, उन्हें पीले फूलों की माला चढ़ाई जाती है.
5. इसी के साथ गरीबों को भोजन कराना और दान देना शुभ माना जाता है.
6. खेती करने वाले लोग इस दिन भगवान को इमली चढ़ाते हैं. मान्‍यता है कि ऐसा करने से साल भर अच्‍छी फसल होती है।


 

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