कन्हैया -एक विचारणीय प्रश्न ?
"कन्हैया कुमार " आज भारतीय राजनीति में इसकी काफी चर्चा हो रही है क्यूँ हो रही है? और कौन है कन्हैया इससे सब कोई वाकिफ है फिर भी ये चेहरा आज एक विचारणीय प्रश्न के रूप में हमारे सामने आया है कि क्या वास्तव में ये देशद्रोही है ?
राष्ट्रविरोधी नारे बुलंद करने के आरोप में चर्चा में आये ''कन्हैया कुमार'' का जन्म बिहार के बेगुसराय जिले के बिहट गांव में हुआ था जहाँ फिलहाल उनकी एक बूढी मां उनके बढ़ते कद को देखकर खुश भी है और इस बात पर दुखी भी है कि जिस बेटे को उन्होंने अपने पलकों की छांव में रखकर पाला-पोसा आज उन्हें राजनैतिक साजिश के तहत कुछ वर्गों ने गद्दार घोषित कर दिया। जब कन्हैया 2016 में देशद्रोह के मामले में गिरफ्तार हुए थे तो उनके पिता जयशंकर ने कहा था, कि "राजनैतिक द्वेषता के कारण मेरे बेटे को फंसाया गया है क्योंकि जेएनयू में एबीवीपी की क़रारी हार हुई। इसलिए खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे वाली बात चरितार्थ कर रही है बीजेपी सरकार।" वहीं, कन्हैया की मां मीना सिंह ने कहा था, "जिस बच्चे को बचपन से पाले-पोसे हैं, भला उसके बारे में दूसरा कैसे जान सकता है। मेरा बेटा निर्दोष है। गरीब का बेटा है इसलिए उसे फंसाया जा रहा है। गौरतलब है कि कन्हैया कुमार को जेएनूय में संसद हमले के दोषी अफ़जल गुरु की बरसी पर हुए एक कार्यक्रम के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था। भारतीय जनता पार्टी का कहना है कि इस कार्यक्रम में भारत विरोधी और पाकिस्तान समर्थक नारे लगे लेकिन न तो अभी तक कोई चार्जशीट दायर की गयी है और ना ही कोई पुख्ता सबूत रखे गए है कि इसमें कन्हैया कुमार दोषी है । यदि सरकार के पास कोई सबूत है, तो मात्र एक चार्जशीट दायर करने में इतना लम्बा वक़्त क्यूँ लग रहा है ? यही कारण है कि इस घटना से राजनैतिक साज़िश की बू आती है ।
हम छीन के लेंगे आज़ादी...
ये नारा तो आपने सुना ही होगा, आज़ादी की मांग कन्हैया हर वक़्त किया करते हैं और इस नारे को विपक्षी पार्टियों ने देशविरोधी करार दिया है जिसको हमारी लोकतान्त्रिक मीडिया का पुरजोर समर्थन मिलता रहा है । भाषणों के कुछ अंशों को प्रसारित कर विपक्षी पार्टियों ने इसका खूब इस्तेमाल चुनाव के समय किया , जबकि कन्हैया अपने हर भाषण में आधारभूत मूल समस्याओं से आज़ादी की बात करते आये है ना कि अलग राष्ट्र की मांग। जनता अपने लोकतान्त्रिक मीडिया पर आज आँख बंद करके भरोसा करती है। यही कारण है की सत्तारूढ़ पार्टी इसका भरपूर फायदा उठाती है। यह कटु सत्य है कि "युवा और राजनीति" विषय पर बड़े बड़े भाषण देने वाले नेता किसी भी नए "युवा नेता" के राजनीति में बढ़ते कद से परेशान हो जाते है. लांछनो का ऐसा प्रहार होता है कि अधिकांश युवा घुटने टेक देते है.और राजनीति को गन्दी नाली कहकर जनता की भीड़ में विलुप्त हो जाते है। कन्हैया कुमार के साथ भी कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा था परन्तु बिहार के इस जुझारू नेता ने 'युवा शक्ति' का ऐसा चेहरा सामने रखा जिसके सामने बड़े बड़े कद्दावर नेता घुटने टेकते नज़र आये । बिहार की राजनीति को पहली बार ऐसा युवा नेता मिला है जिसमें देश का भविष्य दिखता है.। ज़मीन से जुडी बातें करने वाले कन्हैया के बढ़ते कद से बिहार के कुछ युवा नेता भी डरने लगे है यही कारण है कि बिहार के बेगुसराय से चुनाव लड़ने का ऐलान करने के बाद महागठबंधन ने इन्हें अपना नेता बनाने से इनकार कर दिया जिसके बाद उन्होंने सीपीआई के उम्मीदवार के तौर पर चुनावी अखाड़े में कदम रखा।
कन्हैया की पढाई
कन्हैया की पढ़ाई बरौनी के आरकेसी हाई स्कूल में हुई। यह इलाका इंडस्ट्री से भरा हुआ है।कन्हैया को बचपन में अभिनय का शौक था और वह इंडियन पीपल्स थियेटर एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य थे । कन्हैया 2002 में पटना के कॉलेज ऑफ कॉमर्स में दाखिला लिए और यहीं से उन्होंने राजनीति की शुरुआत की। पटना में पढ़ाई करते हुए ही कन्हैया अखिल भारतीय छात्र फेडरेशन के सदस्य बने. पटना में परास्नातक कोर्स खत्म करने के बाद दिल्ली के जेएनयू में अफ्रीकन स्टडीज के लिए पीएचडी में दाखिला लिये. यहां वह 2015 में छात्रसंघ का अध्यक्ष चुना गये. कन्हैया एक बेहतरीन वक्ता हैं। जेएनयू छात्रसंघ चुनाव से एक दिन पहले दी गई उनकी स्पीच को ही यहाँ उनकी जीत का कारण माना जाता है। जेएनयू छात्रों के अनुसार कन्हैया का छात्रों के प्रति काफी सकरात्मक व्यवहार है चाहे छात्र किसी भी संगठन से जुडा हुआ क्यूँ न हो उनकी हर संभव मदद करते आये हैं। कहा जाता है कि जब उन्होंने AISF की नींव जेएनयू में रखी तब उनके समर्थन में सिर्फ 5 लोग थे लेकिन अपने जुझारूपन से वो यहाँ अध्यक्ष बने।
देश की राजनीति का एक नया चेहरा
बेगुसराय से चुनाव लड़ने के दौरान चुनाव प्रचार में जैसा उन्होंने दमखम दिखाया है उससे तो यही लगता है कि वहां मुकाबला काफी कड़ा होने वाला है जीत किसी की भी हो सकती है। लेकिन अगर कन्हैया की वहां से हार होती है तो भी ये हार उनके राजनैतिक जीवन की बाधा नही बन सकती क्योंकि उनके वक्तव्यों में एक गजब की आकर्षण शक्ति है जो हर तबके के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है कारण एक मात्र यह है कि वो समाज के लोगों की दिनचर्या में आने वाली हर छोटी समस्याओं से वाकिफ है और उन्ही समस्याओं की बातें करके सीधा लोगों के दिलों से जुड़ जाते हैं। लोगों से उम्मीद करेंगे कि राजनेताओं की बातों पर गौर करने से पहले उसके पीछे के तथ्यों का अध्ययन जरूर करें.
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