15 साल बाद कुछ खास अक्षय तृतीया। 

Manish Yadav  Thursday 2nd of May 2019 02:03 PM
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वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया का पर्व मनाया जाएगा। हिंदू शास्त्रों के अनुसार अक्षय तृतीया हर मनुष्य के लिए एक खास दिन होता है, इस दिन सोना खरीदना शुभ माना गया है इसको लेकर सिलीगुड़ी में तैयारियां जोरों पर है। सोना चांदी के कारोबारियों के अलावा इस तिथि को कई प्रतिष्ठानों का शुभारंभ और विवाह होना तय है। शास्त्रों के अनुसार यह प्रत्येक मनुष्य के लिए खास दिन होता है।

2019 में यह खास दिन 15 साल बाद सर्वसिद्ध मुहूर्तो में से एक है। इस दिन किसी मांगलिक कार्य के लिए पंचांग देखने की जरुरत नहीं है। यह क्यों दुर्लभ संयोग है क्योंकि सूर्य, शुक्र चंद्र और राहु अपनी अपनी उच्च राशि में प्रवेश करने जा रहे हैं। कहते है कि दीपावली के समान ही मंगलमय है। इसलिए इस दिन सोना खरीदना बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन अगर चांदी की लक्ष्मी गणेश की प्रतिमा लेकर आए और उसे घर के मंदिर में स्थापित करें तो धन-धान्य की कभी कमी नहीं होगी।


सात मई को परशुराम जयंती भी : भगवान परशुराम का जन्म भी वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को हुआ था। इस तिथि पर अक्षय तृतीया का पर्व भी मनाया जाता है। कलयुग में आज भी ऐसे आठ चिरंजीव देवता और महापुरुप है जिन्हें जीवित माना जाता है।
फरसा धारण करने से कहलाए परशुराम ; स्कंद पुराण और भविष्य पुराण में परशुराम का जन्म भृगुश्रेष्ठ महर्षि क्षरा पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न होकर देवराज इंद्र के बरदान स्वरूप रेणुका के गर्भ से इनका जन्म हुआ था।
अक्षय तृतीया से परशुराम जयंती का महत्व : अक्षय तृतीया के दिन ही परशुराम का जन्म हुआ था। इसलिए कहा जाता है कि वर्ष में कोई भी तिथि क्षय हो सकती है परंतु अक्षय तृतीया की तिथि क्षय नहीं होता। परशुराम के कारण इसे सौभाग्य सिद्धि दिवस भी कहा जाता है।
सोना खरीदने के पीछे की मान्यता : अक्षय तृतीया के दिन सोना खरीदने के पीछे मूल रूप से चार मान्यता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन सोना घर पर लाने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती है। सोना की तुलना सूर्य से की जाती है। अक्षय तृतीया पर सूरज देवता से की जाती है। अक्षय तृतीया पर सूरज देवता सबसे तेज चमकते है। इसलिए सोना खरीदना शक्ति और ताकत का प्रतीक माना जाता है। सोना को हमेशा बहुमूल्य धातु और धन-समृद्धि का प्रतीक समझा जाता है। इसलिए अक्षय तृतीया पर सोना खरीदना शुभ माना जाता है।

धार्मिक मान्यता
पुराणों में उल्लेख मिलता है कि इसी दिन से त्रेता युग का आरंभ हुआ था। नर नारायण ने भी इसी दिन अवतार लिया था। भगवान परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ। ऐसा माना जाता है कि इस दिन खरीदा गया सोना कभी समाप्त नहीं होता, क्योंकि भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी स्वयं उसकी रक्षा करते हैं। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार यह दिन सौभाग्य और सफलता का सूचक है। इस दिन को सर्वसिद्धि मुहूर्त दिन भी कहते है, क्योंकि इस दिन शुभ काम के लिए पंचांग देखने की जरूरत नहीं होती। अक्षय तृतीया वैशाख शुक्ल तृतीया को कहा जाता है। वैदिक कैलेंडर के चार सर्वाधिक शुभ दिनों में से यह एक मानी गई है। ‘अक्षय’ से तात्पर्य है जिसका कभी क्षय न हो। अर्थात जो कभी नष्ट नहीं होता। भारत के उत्तर प्रदेश जिले के वृन्दावन में ठाकुर जी के चरण दर्शन इसी दिन होते हैं। अक्षय तृतीया को सामान्यतया ‘अखतीज’ या ‘अक्खा तीज’ के नाम से भी पुकारा जाता है। वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि अक्षय तृतीया के नाम से लोक विख्यात है। अक्षय तृतीया को भगवान विष्णु ने परशुराम अवतार लिया था। अतः इस दिन व्रत करने और उत्सव मनाने की प्रथा है। दिव्य अवतार तिथि ग्रीष्म ऋतु का पदार्पण हरियाली फसल को पका कर, लोगों में खुशी का संचार कर, विभिन्न व्रत और पर्वों के साथ होता है। भारत भूमि व्रत पर्वों  के मोहक हार से सजी हुई मानव मूल्यों व धर्म रक्षा की गौरव गाथा गाती है। धर्म व मानव मूल्यों की रक्षा हेतु श्रीहरि विष्णु देशकाल के अनुसार अनेक रूपों को धारण करते हैं, जिसमें भगवान परशुराम, नर नारायण के तीन पवित्र व शुभ अवतार अक्षय तृतीया को उदय हुए थे। मानव कल्याण की इच्छा से धर्म शास्त्रों में पुण्य शुभ पर्व की कथाओं की आवृत्ति हुई है, जिसमें अक्षय तृतीया का व्र्रत भी प्रमुख है, जो कि अपने आप में स्वयंसिद्ध है।  वृंदावन स्थित श्री बांके बिहारी जी के मंदिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं।

क्षमा प्रार्थना का दिन
‘अक्षय’ का अर्थ है। जो कभी भी खत्म नहीं होता अर्थात जिसका कभी अंत नहीं होता। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार यह दिन सौभाग्य और सफलता का सूचक है।  जाने-अनजाने अपराधों की सच्चे मन से ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करें तो भगवान उसके अपराधों को क्षमा कर देते हैं और उसे सद्गुण प्रदान करते हैं। अतः आज के दिन अपने दुर्गुणों को भगवान के चरणों में सदा के लिए अर्पित कर उनसे सदगुणों का वरदान मांगना चाहिए।

धार्मिक महत्त्व
पुराणों में उल्लेख मिलता है कि इसी दिन से त्रेता युग का आरंभ हुआ था। नर नारायण ने भी इसी दिन अवतार लिया था। भगवान परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ। प्रसिद्ध तीर्थस्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथि से ही पुनः खुलते हैं। वृन्दावन स्थित श्री बांके बिहारी जी के मंदिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वह पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं। अक्षय तृतीया को व्रत रखने और अधिकाधिक दान देने का बड़ा ही महात्म्य है। अक्षय तृतीया में सतयुग, किंतु कल्पभेद से त्रेतायुग की शुरुआत होने से इसे युगादि तिथि भी कहा जाता है। वैशाख मास में भगवान भास्कर की तेज धूप तथा लहलहाती गर्मी से प्रत्येक जीवधारी क्षुधा पिपासा से व्याकुल हो उठता है। इसलिए इस तिथि में शीतल जल, कलश, चावल, चना, दूध, दही आदि खाद्य व पेय पदार्थों सहित वस्त्राभूषणों का दान अक्षय व अमिट पुण्यकारी माना गया है। सुख शांति की कामना से व सौभाग्य तथा समृद्धि हेतु इस दिन शिव-पार्वती और नर नारायण की पूजा का विधान है। इस दिन श्रद्धा विश्वास के साथ व्रत रखकर जो प्राणी गंगा-यमुनादि तीर्थों में स्नान कर अपनी शक्ति के अनुसार देव स्थल व घर में ब्राह्मणों द्वारा यज्ञ, होम, देव, पितृ तर्पण, जप, दानादि शुभ कर्म करते हैं, उन्हें उन्नत व अक्षय फल की प्राप्ति होती है।  सुख व समृद्धि वर्द्धक तृतीया तिथि मां गौरी की तिथि है, जो बल-बुद्धि वर्द्धक मानी गई हैं। अतः  सुखद गृहस्थ की कामना से जो भी विवाहित स्त्री-पुरुष इस दिन मां गौरी व संपूर्ण शिव परिवार की पूजा करते हैं, उनके सौभाग्य में वृद्धि होती है।

शुभ मुहूर्त .
प्रात पांच बजे से 40 मिनट से दोपहर 12.17 मिनट तक पूजा करना चाहिए। जहां तक सोना खरीदने का मुहूर्त है उसके अनुसार सुबह 6.26 मिनट से लेकर रात के 11.47 मिनट तक इसे खरीदा जा सकता है।

 

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