जनसँख्या नियन्तण चुनावी मुद्दा क्यों नहीं। 

MANISH TIWARY  Saturday 27th of April 2019 11:14 AM
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वैसे तो जनसँख्या किसी भी  देश की पूंजी होती  है परंतु अति हमेशा खतरे की ओर इशारा करती है. आज सम्पूर्ण विश्व जब इसपर मंथन कर रहा है तो विश्व की सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश की सरकार इसपर मौन है चुनाव का दौर है सभी पार्टियों ने अपने-अपने एजेंडे जनता के सामने रखे परन्तु किसी ने जनसँख्या नियंत्रण क़ानून की बात नही रखी.जबकि बढती जनसँख्या पूरे विश्व और भारत की सबसे बड़ी प्रमुख समस्या हैं  फिर ऐसा क्या है जो कोई भी सरकार इसमें हस्तक्षेप नही करना चाहती ?

 राजनैतिक मुद्दे पर जनता के पास जाने के क्रम में हमारी भेंट हुई टीoपीoएस कॉलेज ( patna )के रिटायर्ड प्रोफेसर रंजित सिंह से जिन्होंने मोदी सरकार से नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि मैं उनके सभी कार्यों की प्रशंसा करता हूँ परन्तु वो भी जनसँख्या नियंत्रण क़ानून पर कुछ नहीं कर पाए इसका मुझे दुःख है. आइये जानते है क्या कहा रंजित जी ने ....  कहीं जनसँख्या नियंत्रण कानून में बाधा तो नहीं  उत्पन्न कर रही है राजनैतिक तुष्टिकरण की नीति ? सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की आबादी 1,210,193,422 है, जिसका मतलब  है कि भारत ने एक अरब के आंकड़े को पार कर लिया है. यह चीन के बाद दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है. विभिन्न अध्ययनों से यह पता चला है कि सन् 2030 तक भारत चीन को भी पीछे कर  देगा और विश्व का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा।



 


बावजूद इसके कि यहां जनसंख्या नीतियां, परिवार नियोजन जैसे अनेक कार्यक्रम सरकार लाती रहीं है. विभिन्न जनसंख्या नीतियों और अन्य उपायों से प्रजनन दर कम तो हुई है पर फिर भी यह दूसरे देशों के मुकाबले बहुत अधिक है। यही कारण है कि इसको लेकर जनसँख्या नियंत्रण क़ानून की  मांग उठती रही है . क्या है जनसंख्या नियंत्रण क़ानून ? जनसँख्या नियंत्रण क़ानून के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति को 2 से ज्यादा बच्चे पैदा करने पर रोक लगा दिया जाएगा चाहे  वह व्यक्ति किसी भी धर्म, मज़हब को मानने वाला, किसी भी धर्म को ना मानने वाला या वो किसी भी लिंग का क्यों न हो. साथ ही हिंदुस्तान की नागरिकता धारण करने वाला, हिन्दुस्तानी भूमि पर ग़ैर क़ानूनी तरीक़े से रहने वाले को भी इस क़ानून का पालन करना अनिवार्य होगा. उल्लंघन पर कार्यवाही की ऐसी रखी गयी है मांग :- अगर जनसँख्या नियंत्रण के लिए बने इस क़ानून का कोई भी उल्लंघन करता है तो तीसरा बच्चा पैदा होते ही उस पर कड़ी कार्यवाही हो.. इस आपेक्षित कार्यवाही का स्वरूप कुछ ऐसा हो – 1- जन्म लेने वाले बच्चे को भारत की नागरिकता किसी भी रूप में नहीं मिलनी चाहिए. जिस से वो भारत में मतदान या किसी अन्य सरकारी सुविधा से वंचित रहे. 2- तीसरे बच्चे को जन्म देने वाले परिवार की भी सभी सरकारी सुविधाएँ ख़त्म की जाए. उसे सरकारी राशन,  सरकारी स्कूलों में शिक्षा, सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा के साथ – 2 सरकारी नौकरी और रेलवे व बस जैसी सरकारी परिवहन सेवा के उपयोग से भी प्रतिबंधित किया जाय. 3- क्योंकि वो परिवार जनसंख्या के विस्फोट के साथ जनसंख्या का असंतुलन भी पैदा कर रहा होगा इसलिए उसके कृत्य को असंवैधानिक व अलोकतांत्रिक माना जाय. यह भी संभव हो सकता है कि ऐसा कृत्य साम्राज्यवादी मानसिकता के साथ साम्राज्यवादी साजिश का हिस्सा हो. इसलिए उस परिवार को मतदान करने व अन्य सुविधाओं से वंचित किया जाय. 4- इतने के बाद भी यदि कोई चौथा बच्चा पैदा करता है तो उस बच्चे के साथ उस पूरे परिवार को  देश से आधिकारिक रूप से निष्कासित किया जाय. सरकार को क्या है ऐतराज़ ? 25 जून 1975 को आपातकाल लगने के बाद ही राजनीति में आए संजय गांधी के बारे में यह साफ हो गया था कि आगे गांधी-नेहरू परिवार की विरासत वही संभालेंगे. संजय भी एक ऐसे मुद्दे की तलाश में थे जो उन्हें कम से कम समय में एक सक्षम और प्रभावशाली नेता के तौर पर स्थापित कर दे. उस समय जनसँख्या नियंत्रण को लेकर अंतर्राष्ट्रीय दवाब में संजय गाँधी ने नसबंदी क़ानून  को लागू किया और करीब 62 लाख लोगों की जबरन नसबंदी करवा दी कहा जाता है कि इस दौरान करीब २ हज़ार लोगों की मृत्यु भी हो गयी थी . सरकार दम तोड़ते नज़र आने लगी जनता में आक्रोश उमड़ पड़ा . होना यह चाहिए था कि इतना बड़ा अभियान छेड़े जाने से पहले लोगों में इसको लेकर जागरूकता फैलाई जाती. जानकार मानते हैं कि इसे युद्धस्तर की बजाय धीरे-धीरे और जागरूकता के साथ आगे बढ़ाया जाता तो देश के लिए इसके परिणाम क्रांतिकारी हो सकते थे. लेकिन जल्द से जल्द नतीजे चाहने वाले संजय गांधी की अगुवाई में यह अभियान ऐसे चला कि देश भर में लोग कांग्रेस से और भी ज्यादा नाराज हो गए.संजय गांधी के नसबंदी कार्यक्रम से उपजी नाराजगी की 1977 में इंदिरा गांधी को सत्ता से बाहर करने में सबसे अहम भूमिका रही. वर्तमान सरकार के कुछ मंत्रियों ने भी इस पर क़ानून लाने की मांग रखी थी जिसमें सबसे ऊपर है ''गिरिराज सिंह'' जिन्होंने क़ानून ना लाने पर आन्दोलन की शुरुआत नवादा से करने की बात कही थी.पर वो भी इस पर कुछ नहीं कर पाए . क्या है समस्या ? यति नरसिंहानंद सरस्वती जी महाराज ने अपने रक्त से एक  पत्र के माध्यम से वर्तमान सरकार को लिखा था जिसको पढकर सरकार को ऐसा लगा की इससे धार्मिक उन्माद समाज में बढेगा .यति नरसिंहानंद सरस्वती जी महाराज के अनुसार वर्तमान में भारत में एक वर्ग जनसंख्या वृद्धि के बल पर भारत को गुलाम बनाना चाहता है,

 अगर भारत में जल्द ही चीन की तरह जनसंख्या नियंत्रण कानून नहीं बना तो भारत को इस्लामिक गुलामी से कोई नहीं बचा सकता। जनसंख्या वृद्धि के दम पर ही हिन्दुओं को कश्मीर, बंगाल, केरल जैसे राज्यों में प्रताड़ित किया जा रहा है। अगर वर्तमान सरकार ये कानून न बना पाई तो जनसंख्या विस्फोट के कारण मोदी जी के अहम लक्ष्य देश को विकसित बनाने से पिछड़ जायेगा और 1947 की तरह फिर से भारत को धर्म के आधार पर विभाजन की पीड़ा से गुजरना पड़ेगा . समस्या भी है और समाधान भी है परन्तु सरकार मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति  के तहत इसपर कोई कड़ा कानून नहीं ला पा रही है . यदि लोगों के बीच इस प्रस्ताव को लाकर उन्हें इसके प्रति जागरूक किया जाए तो एक बेहतर समाज के निर्माण के साथ इसपर नियंत्रण किया जा सकता है .


 

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