माओवादी अपने बड़े नेताओं की ‘अच्छी जिंदगी’ से ‘नाराज़’ होकर कर रहे हैं आत्मसमर्पण: रिपोर्ट
नई दिल्ली: माओवादी के निचले और मध्यम स्तर के कैडरों में अपने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (माओइस्ट) (CPI (Maoist)) के नेता और उनके नेतृत्व के खिलाफ अंसतोष बढ़ता ही जा रहा है, ऐसा खबर हैं। टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) ने उनके पकड़े गए सदस्यों और उनके ठिकानों से बरामद साहित्य और लेखन के आधार पर नक्सली संगठन का आकलन करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला है।
CRPF का कहना है कि माओवादी कार्यकर्ता मानते हैं कि वरिष्ठ माओवादी नेता का दिमाग अब सिर्फ पैसे कमाने पर है और वो अपने प्रमुख मुद्दों के बारे में ज्यादा परवाह नहीं करते हैं। युवा नेता मुश्किल वाले क्षेत्रों में काम करने के लिए इच्छुक नहीं हैं।वरिष्ठ नेता उनकी सुनते नहीं है, भले ही वे एक अच्छे जीवन का आनंद लें रहे हों। नेतृत्व से नाराज़ होकर कई मध्यम स्तर और यहां तक कि वरिष्ठ कार्यकर्ता आत्मसमर्पण कर रहे हैं। इस साल 359 से अधिक माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया है और 217 बहुत ही खराब स्थिति में सिर्फ छत्तीसगढ़ से हैं।
रिपोर्ट में कहा गया हैं कि जिन आदिवासियों को CRPF के जवानों ने ढूंढा हैं उन्होंने नक्सलियों में शामिल होने से इनकार कर दिया था। उन आदिवासियों ने सरकारी नौकरियों और शिक्षा में अपने बेहतर भविष्य को देखा है। एक CRPF अधिकारी ने बताया कि सामरिक गति-विधि और युवाओं से जुड़ने के इनकार करने के कारण हर हफ्ते माओवादियों की ताकत कम हो रही थी।
CRPF के विश्लेषण में कहा गया है कि पार्टी की सशस्त्र शाखा पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (PLGA) के लिए गोला-बारूद की भी कमी है, लेकिन “वरिष्ठ नेतृत्व इसके बारे में कुछ नहीं कर रहा है”। बहुत सारे माओवादी नेताओं ने संगठन छोड़ दिया है क्योंकि सिर्फ विकास ही इन क्षेत्रों के जनजातियों, किसानों और बेरोजगार युवाओं के कल्याण के लिए एकमात्र रास्ता है।
दरअसल, जंपन्ना और पहद सिंह जैसे शीर्ष माओवादी नेता जो दो दशकों से अधिक समय तक आंदोलन से जुड़े थे वो हाल में ही निराशा के साथ आत्मसमर्पण कर दिया है। CPI (Maoist) की अगुवाई करने वालों की सोच में एक पीढ़ी का अंतर है।
पहद सिंह जिनके पूछताछ के आधर पर टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने यह दावा किया है की माओवादियों के आंदोलन पर भरोसा नहीं किया जा सकता और माओवादि आदिवासियों के लिए कुछ भी नहीं कर रहे है। माओवादियों की कथनी और करनी को हमे उजागर करना चाहिए। सिंह ने जांच एजेंसियों का हवाला देते हुए कहा कि पुलिस को आदिवासियों के प्रतिष्ठा के लिए काम करना चाहिए और उन्हें “नुक्कड़ नाटक” के माध्यम से शिक्षित करना चाहिए। सिंह ने आगे कहा कि उन्हें आगे बढ़ाने के लिए आदिवासियों को जंगल विभाग में नियुक्त करना चाहिए और सरकारी नौकरी देनी चाहिए जिसे वह माओवादियों के प्रलोभन में न आएं।
सिंह ने यह भी कहा कि माओवादी वायु रक्षा में कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने की कोशिश कर रहे हैं, और जंगल में निगरानी कर रहे UAVs से छुप-छुपा रहे हैं और हथियारों की मरम्मत भी कर रहे हैं।
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