सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोर्ट के निर्णयों को राजनितिक रंग देना ‘घोर अवमानना’
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कोर्ट के निर्णय को मीडिया के द्वारा "राजनीतिक रंग" देने के लिए वकीलों को फटकार लगायी है। कोर्ट ने इस कृत्य को “घोर अवमानना” कहते हुए कहा है कि संस्थान की अखंडता की रक्षा के लिए ऐसे लोगों को पेशे से हटा दिया जाना चाहिए।
जस्टिस अरुण मिश्रा और विनीत सरन की पीठ ने बुधवार को एक फैसले में कहा: “यह समय-समय पर देखा गया है कि न्यायिक प्रणाली पर विभिन्न हमले किए गए हैं। कॉउन्सिल बार के सदस्यों के लिए मीडिया में जाना व्यक्तिगत रूप से न्यायाधीशों की आलोचना करना और जजमेंट को राजनीतिक रंग देके सरासर अवमानना करना बहुत आम हो गया है। यह निश्चित रूप से कोर्ट की अवमानना से कम नहीं है।”
पीठ ने आगे कहा, “जब भी कोई राजनीतिक मामला कोर्ट में आता है और उस पर फैसला किया जाता है, तो फैसले को राजनीति से जोड़ना न्यायपालिका को बदनाम करने का एक कार्य है इससे न्यायिक प्रणाली में आम आदमी के विश्वास को को ठेस पहुँचती है। सस्ते प्रचार की भूख बढ़ती जा रही है।”
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि किसी भी न्यायाधीश के खिलाफ शिकायत करने के लिए संबंधित उच्च अधिकारियों के पास एक शिकायत दर्ज करनी चाहिए जो इस पूरे मसले पर ध्यान दे सके। राजनीतिक उद्देश्यों के लिए न्यायिक प्रणाली और इसके कार्यकर्त्ता पर झूठे आरोप लगाकर न्याय व्यवस्था को बदनाम करना अनुचित है। जिन न्यायाधीशों पर आरोप तय किए जाते उन्हें अपनी बात को साबित करने के लिए मीडिया के सामने नहीं जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि ईमानदार जजों की रक्षा करना और उनकी प्रतिष्ठा को बर्बाद न करना बार कॉउन्सिल का कर्तव्य है और साथ ही यह सुनिश्चित करना कि भ्रष्ट न्यायाधीशों को बख्शा न जाए।
कोर्ट ने कहा, “हालांकि वकील सड़कों पर या हड़ताल पर नहीं जा सकते हैं सिवाय इसके कि जब लोकतंत्र खुद खतरे में हो और पूरी न्यायिक व्यवस्था दांव पर हो। व्यवस्था में सुधार करने के लिए उन्हें भ्रष्ट न्यायाधीशों के खिलाफ प्रशासनिक अधिकारियों के पास शिकायत दर्ज करके और जनता में इस तरह के आरोप को नहीं लगाने के लिए कानूनी रूप से उपलब्ध तरीकों का सहारा लेना होगा। न्यायपालिका में भ्रष्टाचार असहनीय है।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि कोर्ट परिसर में जुलूस निकालने, नारे लगाने, लाउडस्पीकर बजाने, न्यायाधीशों के खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने और कोर्ट के शांतिपूर्ण, सम्मानजनक और गरिमापूर्ण कामकाज में खलल डालने के लिए कोई जगह नहीं है।
Supreme Court says giving political colour to verdicts is ‘gravest form of contempt’
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