सुप्रीम कोर्ट : SC/ST नौकरी पदोन्नति में आरक्षण अनिवार्य नहीं, दुहराया 2006 का फैसला
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज अपने 2006 के अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के नौकरी पदोन्नति में आरक्षण के आदेश पर पुनर्विचार की केंद्र की अपील को खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपने 2006 के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि सरकार को SC और ST के लिए सार्वजनिक क्षेत्र में नौकरी पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करना अनिवार्य नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि राज्यों को नौकरी पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए SC और ST की पिछड़ेपन का आकंड़ा एकत्र करने की आवश्यकता नहीं है। 2006 के आदेश के अनुसार राज्यों को नौकरी पदोन्नति में आरक्षण देने की इच्छा रखने के लिए इस आकंड़े को इकट्ठा करना अनिवार्य कर दिया था।
एक याचिका में सर्वोच्च न्यायालय को SC और ST नौकरी पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए 2006 की पीठ से भी बड़ी संवैधानिक पीठ बैठाने की याचना की गई थी।
बुधवार को पांच न्यायाधीशीय संविधान खंडपीठ ने सर्वसम्मति से निर्णय सुनाया। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुआई वाली पीठ ने कहा कि, “राज्यों को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को नौकरी पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए SC और ST की पिछड़ेपन पर आकंड़ा एकत्र करने की आवश्यकता नहीं है।”
केंद्र और विभिन्न राज्य सरकार ने विभिन्न आधारों पर इस फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग की थी और कहा था कि SC और ST समुदायों के सदस्यों को पिछड़ा माना जाता है और नौकरी पदोन्नति में आरक्षण प्रदान किया जाना चाहिए।
इस मामले पर केंद्र समेत विभिन्न हितधारकों की सुनवाई के बाद, खंडपीठ ने 30 अगस्त को अपना फैसला आरक्षित कर दिया था और संशोधित फैसले को 26 सितंबर को पारित कर दिया था।
पहले, सुप्रीम कोर्ट ने SC और ST समुदायों के बीच समृद्ध व्यक्तियों के रिश्तेदारों को सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण देने के पीछे तर्क पर सवाल उठाया था।
उन्होंने पूछा था कि क्यों “क्रीमी लेयर (creamy layer)” (जो ST/SC में संपन्न वर्ग हैं) सिद्धांत, आरक्षण आनंद लेने से अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के समृद्ध लोगों को बाहर करने के लिए उपयोग किया जाता है, तो फिर SC और ST समुदायों के बीच समृद्ध लोगों को पदोन्नति में आरक्षण लाभों से इनकार करने के इसे लिए लागू नहीं किया जा सकता।
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