सुप्रीम कोर्ट का फैसला: व्यभिचार अपराध नहीं, धारा 497 असंवैधानिक
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशीयों की संविधान पीठ ने गुरुवार को एकमत भारतीया दण्ड संहिता (IPC) की धारा 497 जो की व्यभिचार को अपराध बनाता है उसे असंवैधानिक करार दिया है। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई में पांच न्यायाधीशीय को पीठ जिसमे जस्टिस आरएफ नरीमन, एएम खानविलकर, डीवाई चन्द्रचुद और इंदु मल्होत्रा शामिल हैं, उन्होंने अगस्त में इस मामले में फैसला सुनाया था।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है की जो प्रावधान महिलाओं के साथ गैर-समानता या भेदभाव का बर्ताव करता है वो असंवैधानिक है। उन्होंने आगे कहा की यह एक प्राचीन कानून है जो की भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन करता है।
व्यभिचार कानून के अनुसार, एक पति की सहमति के बिना एक विवाहित महिला के साथ यौन संबंध रखने के लिए एक आदमी को दंडित किया जा सकता है। याचिकाकर्ता चाहते हैं कि आईपीसी की धारा 497 को लिंग निष्पक्ष बनाया जाए। भारत में, व्यभिचार एक अपराध है और इसके लिए पांच साल की सजा, या जुर्माना या दोनों हो सकती है।
आईपीसी की धारा 497 (व्यभिचार) को इस तरह से देखा जाता है जैसे “कोई भी व्यक्ति अगर शादी शुदा महिला के साथ उसके पति के सहमति या सहमति के बिना यौन संभोग करता है तब वह बलात्कार के अपराध तहत नहीं आएगा, वह व्यक्ति व्यभिचार के अपराध का दोषी माना जाएगा और उसे 5 साल की सजा या जुर्माना या दोनों एक साथ हो सकता है। ऐसे मामले में पत्नी को अपमानजनक के दृष्टिकोण से दंडित नहीं किया जाएगा।”
यह कानून किसी भी महिला को व्यभिचार करने वाले पति पर या जिस महिला के साथ पति यौन संभोग में शामिल है मुक़दमा चलाने का अधिकार नहीं देता है। इसका मतलब सिर्फ पति को इस कानून के तहत व्यभिचारी पर मुकदमा चलाने की अनुमति दी गई है।
केंद्र सरकार ने आईपीसी धारा 497 का समर्थन करते हुए कहा है कि सुप्रीम कोर्ट भी यह कह चुका है कि व्यभिचार विवाह संस्थान के लिए खतरा है और परिवारों पर भी इसका असर पड़ता है।
भारतीय दंड संहिता का धारा 497 क्या है?
भारतीय दंड संहिता का धारा 497 व्यविचार से सम्बंधित हैं। यह कहता हैं:
- जो भी कोई ऐसी महिला के साथ, जो किसी अन्य पुरुष की पत्नी है और जिसका किसी अन्य पुरुष की पत्नी होना वह विश्वास पूर्वक जानता है, बिना उसके पति की सहमति या उपेक्षा के शारीरिक संबंध बनाता है जो कि बलात्कार के अपराध की श्रेणी में नहीं आता, वह व्यभिचार के अपराध का दोषी होगा, और उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा जिसे पांच वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है या आर्थिक दंड या दोनों से दंडित किया जाएगा। ऐसे मामले में पत्नी दुष्प्रेरक के रूप में दण्डनीय नहीं होगी।
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