सुप्रीम कोर्ट ने 16 राज्यों के 10 लाख आदिवासियों को जंगल से हटाने के दिए आदेश 

Team Suno Neta Thursday 21st of February 2019 12:12 PM
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने 16 राज्यों में वनों से आदिवासी समुदायों और अन्य वनवासियों के 10 लाख से अधिक परिवारों को बेदखल करने का आदेश दिया है। कोर्ट का यह आदेश एक वन्यजीव समूह द्वारा दायर की गई याचिका के संबंध में आया है जिसमें वन अधिकार अधिनियम की वैधता पर सवाल उठाया गया था।  

2006 में संसद द्वारा पारित वन अधिकार अधिनियम की वैधता को चुनौती देते हुए याचिका डाली गयी थी। इस अधिनियम में पारंपरिक वनवासियों को उनके गाँव की सीमाओं के भीतर वनों के उपयोग, प्रबंधन और शासन के उनके अधिकार को वापस देने के लिए नियमावली थी। याचिकाकर्ता ने यह भी मांग की थी कि वे सभी जिनके पारंपरिक वनभूमि पर दावे कानून के तहत खारिज हो जाते हैं, उन्हें राज्य सरकारों द्वारा निष्कासित कर दिया जाना चाहिए।  

यह आदेश राजनीतिक रूप से विवादास्पद है। इससे पहले 14 फरवरी को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने आरोप लगाया था कि भाजपा “मूक दर्शक” के रूप में काम कर रही है, जबकि अधिनियम को कोर्ट में चुनौती दी जा रही हैं। उन्होंने कहा, “यह जंगलों से लाखों आदिवासियों और गरीब किसानों को बाहर निकालने के इरादे का संकेत दे रहा है।”

मामले में याचिका में मांग की गई थी कि नए कानून के तहत पारंपरिक वनक्षेत्रों पर दावा खारिज कर दिया जाए। इस बीच अभियान फॉर सर्वाइवल एंड डिग्निटी जो आदिवासी समूहों और वनवासियों के आंदोलन का एक संघ है। उन्होंने आरोप लगाया है कि सुनवाई के दिन केंद्र के वकील अनुपस्थित थे।

जस्टिस अरुण मिश्रा, नवीन सिन्हा और इंद्राणी बनर्जी सहित तीन जजों के सदस्यों ने राज्यों को 27 जुलाई तक का समय दिया (जब इस मामले की अगली सुनवाई होगी) और सरकारों को उन सभी को बेदखल करने का निर्देश दिया जिनके दावे खारिज कर दिए गए थे। आदेश में कहा गया है, “अगर मामले में निष्कासन नहीं किया जाता है, तो इस मामले को कोर्ट द्वारा गंभीरता से देखा जाएगा।”

राज्यों द्वारा दायर हलफनामों के अनुसार, वन अधिकार अधिनियम के तहत अब तक अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वनवासियों द्वारा किए गए 11,72,931 भूमि स्वामित्व के दावों को विभिन्न आधारों पर खारिज कर दिया गया है। तीन राज्य मध्य प्रदेश, कर्नाटक और ओडिशा में भूमि का स्वामित्व कुल दावों का 20% हिस्सा हैं। इन दावों को अस्वीकार कर दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “भारतीय वन सर्वेक्षण को एक उपग्रह सर्वेक्षण करने और अतिक्रमण की स्थिति को दर्ज करने के लिए जगह दें और जहां तक संभव हो सके बेदखली के बाद स्थिति बताएं।”

आदिवासियों के निष्कासन का राज्यवार विवरण इस प्रकार है:

✔️आंध्र प्रदेश: 66,351 दावे खारिज

✔️असम: 22,398 अनुसूचित जनजातियों के दावे और 5,136 अन्य पारंपरिक वनवासियों के दावे खारिज।\

✔️बिहार: 4,354 दावे खारिज

✔️छत्तीसगढ़: 20,095 दावे खारिज; 4,830 के खिलाफ कार्रवाई की गई।

✔️झारखंड: अनुसूचित जनजाति के 27,809 और अन्य पारंपरिक वनवासियों के 298 दावे खारिज।

✔️कर्नाटक: अनुसूचित जनजातियों के 35,521 और अन्य पारंपरिक वनवासियों के 1,41,019 दावे खारिज।
✔️केरल: 894 दावे खारिज

✔️मध्य प्रदेश: अनुसूचित जनजातियों के 20,4123 दावे और अन्य पारंपरिक वनवासियों के 1,50,664 दावे खारिज।

✔️महाराष्ट्र: अनुसूचित जनजाति के 13,712 और अन्य पारंपरिक वनवासियों के 8,797 दावे खारिज।

✔️ओडिशा: अनुसूचित जनजातियों के 1,22,250 दावे और अन्य पारंपरिक वनवासियों के 26,620 दावे खारिज।

✔️राजस्थान: अनुसूचित जनजाति के 36,492 दावे और अन्य पारंपरिक वनवासियों के 577 दावे खारिज।

✔️तमिलनाडु: अनुसूचित जनजातियों के 7,148 दावे और अन्य पारंपरिक वनवासियों के 1,881 दावे खारिज।

✔️तेलंगाना: अनुसूचित जनजातियों के 82,075 दावे खारिज।

✔️त्रिपुरा: अनुसूचित जनजातियों के 34,483 दावे और अन्य पारंपरिक वनवासियों के 33,774 दावे खारिज।

✔️उत्तर प्रदेश: अनुसूचित जनजातियों के 20,494 दावों और अन्य पारंपरिक वनवासियों के 38,167 दावों को खारिज कर दिया।

✔️पश्चिम बंगाल: अनुसूचित जनजातियों के 50,288 दावे और अन्य पारंपरिक वनवासियों के 35,856 दावे खारिज।


 

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