सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो को 50 लाख, नौकरी और घर देने का आदेश दिया 

Shruti Dixit  Thursday 25th of April 2019 06:46 PM
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सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को साल 2002 के 'गुजरात दंगा मामले' में सुनवाई करते हुए गुजरात सरकार को आदेश दिया कि वह दंगा पीडि़त बिलकिस बानो को 50 लाख रुपए मुआवजा, सरकारी नौकरी और आवास मुहैया कराए। बिलकिस बानो साल 2002 के गुजरात दंगों के दौरान सामूहिक दुष्कर्म की शिकार हुई थी। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ को गुजरात सरकार ने सूचित किया कि इस मामले में चूक करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की गई है। उनके पेंशन लाभ रोक दिए गए हैं और बांबे हाईकोर्ट ने जिस आइपीएस अधिकारी को दोषी माना है, उसे दो रैंक डिमोट किया गया है। बता दें कि बिलकिस ने पूर्व में राज्य सरकार द्वारा प्रस्तावित पांच लाख रुपये का मुआवजा लेने से इनकार कर दिया था और दृष्टांत बनने लायक मुआवजा देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी।

बिलकिस बानो गैंगरेप मामला गुजरात दंगों का सबसे भयावह मामला था। गुजरात में अहमदाबाद के निकट रणधीकपुर गांव में उग्र भीड़ ने तीन मार्च 2002 को बिलकिस बानो के परिवार पर हमला किया था। बिलकिस उस समय 21 साल की थीं और गर्भवती थीं। गोधरा गुजरात दंगों के बाद उनके साथ गैंगरेप किया और उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया। भीड़ ने 14 लोगों को मार दिया गया था जिसमें उनकी 2 साल की बच्ची समेत परिवार के कई लोग शामिल थे। और दो साल की बच्ची भी थी। इनमें से सिर्फ 7 के शव मिले थे।

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को मामले में गलत जांच करने में दोषी पाए गए पुलिसकर्मियों के खिलाफ विभागीय कार्यवाही के बाद उन पर तुरंत सजा लागू करने का आदेश दिया है। इसमें तीन पुलिसकर्मियों को सेवानिवृत्ति के लाभ से वंचित करना, एक को सेवा से बर्खास्त करना और एक आईपीएस अधिकारी का डिमोशन शामिल है। 2008 में मुंबई के एक सेशन कोर्ट ने 11 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इनमें से तीन ने बिलकिस के साथ रेप की बात स्वीकार की थी। बॉम्बे हाई कोर्ट ने मई 2017 को सभी आरोपियों की उम्रकैद की सजा बरकरार रखी और 7 आरोपियों को बरी करने का आदेश ठुकरा दिया। इसमें पुलिसकर्मी और डॉक्टर भी शामिल थे जिन्होंने सबूतों से छेड़छाड़ की थी।

कोर्ट ने सभी दोषियों को 55 हजार रुपये मुआवजे के रूप में बिलकिस को देने का आदेश दिया। इसको बाद जिन पुलिसकर्मियों को हाई कोर्ट ने जांच में दोषी पाया था, गुजरात सरकार ने उन्हें बहाल कर दिया था। इसके बाद मामले में सुप्रीम कोर्ट को दखल देना पड़ा और पुलिस कर्मियों को पेंशन सुविधा देने से रोक लगाई, साथ ही एक आईपीएस अधिकारी को डिमोट करने का आदेश दिया।


 

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