‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर नरेंद्र मोदी सरकार का सर्वदलीय बैठक, कई पार्टियों ने किया विरोध
नई दिल्ली: “एक राष्ट्र,एक चुनाव” के विचार का समर्थन करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को एक बैठक की अध्यक्षता की जहां उन्होंने लोकसभा और राज्यसभा के प्रतिनिधियों को दिल्ली में आमंत्रित किया। बैठक में उपस्थित नेताओं में जनता दल (यूनाइटेड) के नीतीश कुमार, नेशनल कांग्रेस के फारूक अब्दुल्ला, शिरोमणि अकाली दल के सुखबीर सिंह बादल, बीजु जनता दल के नवीन पटनायक, पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की महबूबा मुफ्ती, वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के जगनमोहन रेड्डी शामिल हुए।
इस बैठक में “एक राष्ट्र, एक चुनाव” के विचार, 2022 में आजादी के 75वें वर्ष के जश्न, महात्मा गांधी के इस साल 150वें जयंती वर्ष को मनाने समेत कई मामलों पर चर्चा की जाएगी। फिलहाल पीएम की पहल से इस संवेदनशील मुद्दे पर फिर एक बड़ी राजनीतिक बहस शुरू हो गयी है। ममता बनर्जी ने तो इस बैठक का हिस्सा बनने से ही इनकार कर दिया है।
भारतिय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विनय सहस्रबुद्धे ने कहा, “वन नेशन, वन इलेक्शन” के विचार को भाजपा या मोदी के एजेंडा के तौर पर नहीं देखना चाहिए। ये देश का एजेंडा होना चाहिए।”
नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है। बीजेडी सांसद पिनाकी मिसरा ने एक संवाददाता से कहा कि कई साल से इस प्रस्ताव का विरोध कर रही कांग्रेस इस बैठक से पहले अपने पत्ते नहीं खोल रही है। वहीं कांग्रेस के प्रवक्ता मीम अफज़ल ने कहा कि उनकी पार्टी इस प्रस्ताव के सभी पहलुओं को ध्यान में रख कर कोई फैसला करेगी। उन्होंने कहा कि अभी कहना मुश्किल है कि पीएम की बैठक में इसके पक्ष में रहेंगे या विपक्ष में।
वहीं लुधियाना से कांग्रेस सांसद रवनीत बिट्टू ने इसका समर्थन किया है। रवनीत बिट्टू जो कि कांग्रेस सांसद हैं ने कहा, “मेरी निजी राय है कि ये बहुत जरूरी है। वन नेशन, वन इलेक्शन होना चाहिए। अभी लगातार चुनाव की वजह से एक राज्य में पांच साल में से करीब 1 साल तो आचार संहिता ही लगी रहती है।”
इस मुद्दे पर लेफ्ट, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और टीआरएस ने सवाल खड़े कर दिये हैं। तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी का कहना है कि इस सोच को लागू करना संभव नहीं है। संविधान इसकी इजाज़त नहीं देता है। वहीं समाजवादी पार्टी से सांसद जावेद इस प्रस्ताव को व्यवहारिक नहीं मानते हुए कहते हैं कि उनकी पार्टी इसके खिलाफ है। सीपीआई के नेता डी राजा कहते हैं कि वे इस प्रस्ताव के खिलाफ हैं। मौजूदा संविधान में इसे लागू करना संभव नहीं होगा।
तेलंगाना राष्ट्र समिति के नेता नामा नागेश्वर राव ने कहा, “ये प्रस्ताव अच्छा है लेकिन इसे लागू करना कितना व्यवहारिक होगा ये देखना होगा। हर राज्यों की इस पर अलग-अलग राय है।”
“एक देश, एक चुनाव” पर चल रही मोदी की बैठक में 14 पार्टियां नहीं पहुंची है। एनडीए की सहयोगी रही शिवसेना भी इस बैठक में नहीं पहुंची है।
नवीन पटनायक ने “एक देश, एक चुनाव” का समर्थन किया है, जबकि सीपीएम, समाजवादी पार्टी ने इसका विरोध किया है। मीटिंग में नहीं पहुंचने वाली पार्टियों में कांग्रेस, टीएमसी, टीडीपी, आम आदमी पार्टी, एआईएडीएमके, डीएमके, एसपी, बीएसपी, शिवसेना, आरजेडी, जेडीएस, झारखंड मुक्ति मोर्चा, एआईयूडीएफ और आईयूएमएल शामिल हैं।
बैठक में बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती शामिल नहीं होंगी।मायावती ने पीएम मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि ये राष्ट्रीय समस्याओं से ध्यान बांटने का प्रयास व छलावा मात्र है।ईवीएम पर बैठक होती तो मैं जरूर शामिल होती।
किसी भी लोकतांत्रिक देश में चुनाव कभी कोई समस्या नहीं हो सकती है और न ही चुनाव को कभी धन के व्यय-अपव्यय से तौलना उचित है। देश में ’एक देश, एक चुनाव’ की बात वास्तव में गरीबी, महंगाई, बेरोजबारी, बढ़ती हिंसा जैसी ज्वलन्त राष्ट्रीय समस्याओं से ध्यान बांटने का प्रयास व छलावा मात्र है।
— Mayawati (@Mayawati) June 19, 2019
एक राष्ट्र, एक चुनाव के लिए कहा जा रहा है कि एक साथ चुनाव होने से करदाताओं के पैसे बचेंगे और इन पैसों का इस्तेमाल जनता की भलाई के लिए किया जाएगा। साथ ही यह भी तर्क दिया जा रहा है कि राज्यों में बार-बार विधानसभा चुनाव कराया जाना भारत के विकास की कहानी के लिए एक बड़ी बाधा है लेकिन विरोधी मोदी के इन तर्कों से इत्तेफाक रखते नहीं दिख रहे हैं।
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