ट्रिपल तलाक़ अध्यादेश को अपराधीक बनाने के लिए केंद्र से मिली मंजूरी
नई दिल्ली: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को राजनीतिक विरोधियों और मुस्लिम पादरी के विरोध को कम करने के लिए तत्काल ट्रिपल तलाक़ के अध्यादेश को अपराधीक बनाने के लिए मंजूरी दे दी है। बुधवार रात सुप्रीम कोर्ट के द्वारा इस अध्यादेश को असंवैधानिक घोषित करने के बाद, इस अध्यादेश का इस्तेमाल अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं के खिलाफ किया जा रहा था। राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने हस्ताक्षर कर इस अध्यादेश को मंजूरी दे दी है।
गैर-एनडीए पार्टियों के विरोध के कारण यह अध्यादेश कुछ दिनों से संसद में फंसा था परन्तु कोविंद के हस्ताक्षर करते ही यह ध्यादेश बिल के रूप में पारित हो गया है। इस बिल में तीन साल तक की सजा और साथ में गैर-जमानती अपराध के रूप में लाया गया है। बिल के अनुसार मजिस्ट्रेट को अधिकार मिला है कि वह पत्नी की बाते सुनने के बाद पति को जमानत दे सकता है। सरकार ने कहा कि "तलाक़-ए-बिद्दत" के दुरुपयोग के कारण यह निर्णय लेना अनिवार्य था।
कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि एक मजिस्ट्रेट पति और पत्नी के बीच विवाद को सुलझाने के लिए अपनी शक्तियों का उपयोग कर सकता है, इससे सुलह की गुंजाईश बनती है।
बहुत सारे मुस्लिम देशों ने ट्रिपल तलाक़ पर पहले से ही पाबंदी लगा रखी है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने तुरंत मोदी सरकार के इस निर्णय को ऐतिहासिक बताया है। कानून मंत्री ने एक डेटा साझा करते हुए कहा कि ट्रिपल तलाक़ के 430 मामले जनवरी 2017 से हुए हैं और इसमें निरंतर बढ़ोतरी जारी है। उन्होंने राज्यसभा में विधेयक रोकने के लिए कांग्रेस को दोषी ठहराया। उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को वोट बैंक राजनीति से ऊपर उठकर लिंग न्याय के अध्यादेश को सक्षम करने की आवश्यकता बताई।
प्रसाद ने बसपा अध्यक्ष मायावती और तृणमूल नेता ममता बनर्जी पर हमला किया, जबकि उनकी मदद के लिए अपील भी की थी। अध्यादेश केवल तत्काल ट्रिपल तलाक़ की घटनाओं पर लागू होता है ना की शरिया के अनुसार तलाक़ पर।
कानून पारित करने के लिए राज्यसभा में नाकाम समर्थन के बाद, अध्यादेश का मार्ग चुना गया था। प्रसाद ने कहा कि वह अध्यादेश की सफलता के लिए समर्थन मांगने वरिष्ठ कांग्रेस कार्यकर्ता आनंद शर्मा से भी मुलाकात की थी। उन्होंने कहा, मुख्य विपक्ष से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है।उन्होंने आगे कहा संविधान की सूची में विवाह और तलाक के क़ानूनों में, संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित किसी भी कानून पर राज्यों की मंजूरी मांगने के लिए केंद्र बाध्य नहीं है।
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