गंगा के लिए 111 दिनों के उपवास के बाद प्रोफेसर जी डी अग्रवाल की मृत्यु
नई दिल्ली: गंगा को बचाने के लिए और उसकी प्राचीन महिमा लौटने के लिए प्रोफेसर जी डी (गुरुदास) अग्रवाल की 111 दिनों के उपवास के बाद मृत्यु हो गई। वह गंगा नदी के तल में जल विद्युत परियोजनाओं और रेत खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे थे। प्रोफेसर अग्रवाल की मृत्यु केंद्र सरकार की बहुत प्रचारित “नमामी गंगा” योजना की विफलता पर भी ध्यान केंद्रित करता है।
अग्रवाल – जिन्हे संत स्वामी ज्ञान स्वरुप सानंद के नाम से भी जाना जाता था – IIT कानपुर में एक प्रोफेसर थे और IIT कानपुर से ही उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा पूरी की थी। 1974 में उन्हें केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का पहला सदस्य सचिव बना दिया गया। 2011 में साधु बनने से पहले एक पर्यावरण कार्यकर्ता भी थे। इस सप्ताह सरकार एक नई नीति के साथ आइ जिसके तहत नदी के प्रवाह के किनारे न्यूनतम पर्यावरणीय क्षेत्र बनाए रखने की पेशकश रखी गई परन्तु प्रोफेसर इससे संतुष्ट नहीं थे।
1986 में शुरू हुई गंगा एक्शन प्लान पर अब तक हजारों करोड़ खर्च किए जाने के बाद भी यह विफल रही। गंगा को पुनर्जीवित करने में प्राथमिक कठिनाई सिंचाई के लिए पानी का भारी कटाव है। भारत को ड्रिप सिंचाई जैसे जल संरक्षण उपायों को तत्काल अपनाने की जरूरत है। गंगा के साथ नागरिक निकाय सीवेज उपचार यंत्रों के रखरखाव और उद्योगों द्वारा प्रदूषित निर्वहन के विनियमन की निगरानी रखने में सरकार विफल रही है।
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