नागरिकता संसोधन विधेयक: राज्य सरकार की अनुमति के बिना नही दी जाएगी नागरिकता  

Team Suno Neta Wednesday 23rd of January 2019 11:11 AM
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नई दिल्ली: नागरिकता (संशोधन) विधेयक  पूर्वोत्तर में विरोध के बावजूद निरस्त होने का कोई संकेत नहीं दिख रहा है। गृह मंत्रालय ने मंगलवार को पुष्टि की  कि विदेशियों को राज्य सरकारों की सहमति के बिना भारतीय नागरिकता नहीं दी जाएगी।

गृह मंत्रालय के प्रवक्ता अशोक प्रसाद ने कहा, “विधेयक के बारे में पूर्वोत्तर में गलत धारणा असुरक्षा पैदा कर रही है। विधेयक किसी को भी स्वचालित नागरिकता नहीं देता है। यह कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में कुछ विशिष्ट क्षेत्रों के लोगों को विचार क्षेत्र में लाता है। कोई भी रातों रात देश का नागरिक नही बन सकता है।’’

गौरतलब है कि यह विधेयक 8 जनवरी को लोकसभा द्वारा पारित किया गया था और इसे राज्यसभा में पेश किया गया था। राज्य सभा में इसे बिहार में भाजपा के सहयोगी JDU ने विरोध करने की कसम खाई थी। इस विधेयक का पूरे उत्तर पूर्व में विरोध किया जा रहा है जबकि असम में इसे क्षेत्र के स्थानीय समुदायों के लिए “खतरे’’ के रूप में देखते हैं क्योंकि यह असम समझौते के खिलाफ जाता है। विधेयक में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों, उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों, हिंदुओं, सिखों, जैनियों, बौद्धों और ईसाइयों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने में नियमों में ढील दी गयी है। विरोध को कम करने के लिए प्रसाद ने नए विधेयक के तहत कहा, “राज्य सरकार सभी दावों का सत्यापन करेगी फिर केंद्र को सिफारिशें करेगी और केवल उन सिफारिशों के आधार पर केंद्र सरकार कार्यवाही करेगी। राज्य सरकार की सिफारिशों के बिना किसी को भी नागरिकता नहीं दी जाएगी।’’

असम के स्थानीय लोगों के अनुसार नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन करने वाला विधेयक 1985 असम समझौते के प्रावधान के खिलाफ है, जो 24 मार्च, 1971 की आधी रात के बाद असम में प्रवेश करने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए एक नियम के रूप में माना जाएगा। असम में हालिया NRC अध्याय1985 के समझौते का एक प्रमुख बिंदु था।

प्रसाद ने स्पष्ट किया कि उल्लेखित समुदायों से आने वाले सभी लोग नागरिकता के पात्र नहीं होंगे। यह केवल उन लोगों के लिए लागू है जो तीन देशों- बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के इन समुदायों से संबंधित हैं, जिन्हें धार्मिक उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा है। राज्य सरकार द्वारा की गई जांच मूल देश के व्यक्ति के दावे और धार्मिक उत्पीड़न के लिए व्यक्तिगत दावे को सत्यापित करने का प्रयास करेगी। एक बार आवेदन करने वाला व्यक्ति इन दोनों परीक्षणों को पार कर लेगा तो राज्य सरकार नागरिकता के लिए उसके नाम पर विचार करेगी और उसकी सिफारिश केंद्र को करेगी।

असम में विधेयक के विरोध का उल्लेख करते हुए प्रसाद ने कहा कि नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिज़न्स (NRC) की प्रक्रिया चल रही है जबकि संसद के समक्ष लंबित यह विधेयक केवल उन लोगों को राहत देता देगा जो धार्मिक उत्पीड़न के बाद भारत आए थे। गृह मंत्रालय उन लोगों को मंजूरी प्रदान करने के एक प्रस्ताव पर भी विचार कर रहा है जो उत्तर पूर्व को छोड़कर पूरे भारत में कहीं भी बसना चाहते हैं।

इससे पहले केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि यह विधेयक सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लागू होगा और लाभार्थी देश में कहीं भी रह सकते हैं।


 

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