कोरेगांव हिंसा: कोर्ट ने आरोपी मिलिंद एकबोटे को सार्वजनिक रैली और मीडिया से बात करने की अनुमति दी
नई दिल्ली: कोरेगांव भीमा हिंसा के मामले में आरोपी हिंदुत्ववादी नेता मिलिंद एकबोटे को पुणे में एक अदालत ने सोमवार को पुलिस स्टेशन में साप्ताहिक उपस्थिति, सार्वजनिक रैलियों में बोलने और मीडिया से बात करने की शर्तों में छूट देकर राहत दी। आरोपी मिलिंद एकबोटे को एक दलित महिला अनीता सावले द्वारा दर्ज शिकायत के बाद SC/ ST अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत दर्ज किया गया था। एक अन्य हिंदुत्ववादी नेता संभाजी भिड़े भी प्राथमिकी में सह-आरोपी थे।
भिडे को "सबूतों की कमी" के चलते गिरफ्तार नहीं किया गया था। एकबोटे को 14 मार्च, 2018 को पुणे ग्रामीण पुलिस ने गिरफ्तार किया था। सुप्रीम कोर्ट ने उसकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी। हालाँकि कोर्ट ने बाद में उसे 4 अप्रैल, 2018 को जमानत पर रिहा कर दिया था। लेकिन शर्त यह थी कि वह हर सोमवार को संबंधित पुलिस स्टेशन को रिपोर्ट करेंगा और इस मामले में वह गवाहों पर दबाव नही डालेंगा, अपना पासपोर्ट पुलिस को सौंपेंगा, मीडिया से बात नही करेंगा और कोई भी सार्वजनिक रैली नही करेगा इत्यादि।
इस बीच पुलिस ने सहायक पुलिस निरीक्षक नितिन शिवाजी लाकडे द्वारा दर्ज एक अन्य मामले में एकबोटे को गिरफ्तार किया। लाकडे 1 जनवरी को हिंसा के दौरान घायल हो गए थे। बाद में एकबोटे को 19 अप्रैल को जमानत मिल गई और वह यरवदा जेल से रिहा कर दिया गया। अब से लगभग चार महीने पहले एकबोटे ने अपने वकीलों एस के जैन और अमोल डांगे के माध्यम से अदालत के समक्ष एक आवेदन दायर किया था। आवेदन में पुलिस स्टेशन में उपस्थिति के बारे में शर्तों में छूट देने और सार्वजनिक रैलियों और प्रेस कॉन्फ्रेंसों में बोलने पर प्रतिबंध से छूट की मांग की थी।
एक अन्य पीड़ित भीमाबाई तुलेव ने एकबोटे के आवेदन का विरोध इस आधार पर किया था कि इन शर्तों में छूट देने से कोरेगांव हिंसा से सम्बंधित पूछताछ का काम बाधित हो सकता है।
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