गोमांस खाने के अधिकार पर दो साल पुराने पोस्ट के लिए आदिवासी प्रोफेसर हांसदा गिरफ़्तार 

Amit Raj  Monday 27th of May 2019 11:19 AM
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जीतराई हांसदा

नई दिल्ली: गोमांस खाने के अपने समुदाय के अधिकार पर टिप्पणी पोस्ट करने के लगभग दो साल बाद भाजपा-शासित झारखंड में आदिवासी प्रोफेसर जीतराई हांसदा को गिरफ्तार कर लिया गया है।

आदिवासी प्रोफेसर जीतराई हांसदा के वकील ने कहा कि उनके ख़िलाफ़ जून, 2017 में मामला दर्ज किया गया था। वकील ने आशंका जताई कि यह गिरफ़्तारी जानबूझकर चुनावों के बाद की गई है। चुनाव से पहले गिरफ़्तारी करके भारतीय जनता पार्टी आदिवासियों को नाराज़ करके चुनावों में उनका वोट गंवाना नहीं चाहती थी।

झारखंड में मुख्यमंत्री रघुबर दास के नेतृत्व में भाजपा की ही सरकार है। वहीं भाजपा ने राज्य की 14 लोकसभा सीटों में से 12 में जीत दर्ज की है।

हांसदा ने एक निजी पत्रकार से मुखतिब होते हुए कहा, “मैं अपने बयान पर कायम हूं। बीफ (गोमांस) खाने को समाज के लिए आपत्तिजनक माना जाता है लेकिन यह हमारी आदिवासी संस्कृति का हिस्सा है।  लेकिन कुछ चीजें जो मैंने पोस्ट की थीं, वे गलत थीं मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए।”

हांसदा ने पोस्ट किया था: “प्रिय साथियों, क्या कोई मुझे बता सकता है कि मैं जमशेदपुर में गोमांस कहां खरीद सकता हूं? मैं बीफ पार्टी आयोजित करना चाहता हूं।”

उन्होंने कहा था: “गोमांस खाना आदिवासी संस्कृति का हिस्सा था। यदि संथाल भारतीय हैं, तो ऐसा कोई कानून नहीं होना चाहिए जो हमें हिंदू रीति-रिवाजों और रिवाजों को स्वीकार करने के लिए मजबूर करे। मैं इसे अस्वीकार करता हूं।”

ज्ञात हो कि झारखंड में गोमांस खाना या बेचना गैरकानूनी है।

इसपर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के छात्र विंग अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं ने साकची पुलिस में शिकायत दर्ज कराई और हांसदा को ग्रेजुएट स्कूल कॉलेज फॉर विमेन से हटाने की मांग की गई। संयोगवश, हांसदा का 11 महीने का अनुबंध उसी समय समाप्त हो गया और उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया।

छह महीने बाद, विश्वविद्यालय ने उन्हें जमशेदपुर को ऑपरेटिव कॉलेज में गेस्ट लेक्चरर के रूप में शामिल होने की अनुमति दी, क्योंकि उन्होंने स्पष्ट रूप से कोई और विवादित टिप्पणी नहीं करने का वादा किया था।

पुलिस ने शुरुआत में हंसदा के खिलाफ एक सामान्य डायरी दर्ज की, जिसे एक “जांच” के बाद एफआईआर में बदल दिया गया।

हांसदा ने कहा कि उन्होंने अग्रिम जमानत के लिए दो याचिकाएं दायर की हैं, पहले जिला अदालत और बाद में झारखंड उच्च न्यायालय।

हांसदा के गिरफ्तारी संबंधित सवाल किए जाने पर साकची थाना प्रभारी राजीव कुमार ने कहा कि वह काफी समय से फरार था। कुमार ने कहा, “पुलिस पिछले चार महीनों से हांसदा को गिरफ्तार करने की कोशिश कर रही थी क्योंकि झारखंड उच्च न्यायालय ने उन सभी को राउंड अप करने के लिए कहा था जिनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट लंबित थे। हमने पिछले चार महीनों में परसुडीह के करंडी में हंसदा के घर पर पांच बार छापा मारा, लेकिन हर बार वह बच गया। कल रात हमें एक सूचना मिली कि वह पक्की होटल में है, जो साकची में कालीमाटी रोड पर एक भोजनालय है। हमने उस जगह पर छापा मारा और उसे गिरफ्तार कर लिया।”

हांसदा के खिलाफ धार्मिक मान्यताओं का अपमान करने और लोगों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के लिए आईपीसी की धारा 153 (ए), 295 (ए) और 505 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है। इससे पहले 2017 में जीतराई हांसदा के खिलाफ दर्ज शिकायत का विरोध करते हुए आदिवासी परंपराओं के संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्था माझी परगना महल के प्रमुख दसमाथ हांसदा ने कॉलेज के वाइस चांसलर को पत्र लिखकर उनसे अनुरोध किया था कि सांप्रदायिक संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की शिकायत के आधार पर उन्हें कॉलेज से न निकाला जाए।

वहीं कोल्हान विश्वविद्यालय के प्रवक्ता एके झा ने कहा कि विश्वविद्यालय को हांसदा की गिरफ्तारी के बारे में कुछ नहीं पता था। “यदि कॉलेज कोई प्रस्ताव भेजता है, तो गेस्ट फैकल्टी को फिर से नियुक्त किया जाएगा। हालाँकि, चूंकि हांसदा की एक अच्छी अकादमिक प्रोफ़ाइल थी और उन्होंने स्वीकार किया था कि वो विश्वविद्यालय की आचार संहिता के खिलाफ व्यवहार के दोषी हैं और इसे नहीं दोहराएंगे, इसलिए विश्वविद्यालय ने उन्हें दूसरा मौका दिया। फिलहाल अब तक, हम उसकी गिरफ्तारी के बारे में कुछ नहीं जानते हैं।  एक बार जब हमें आधिकारिक रूप से कोई सूचना मिलती है, तो विश्वविद्यालय उसके दिशानिर्देशों का पालन करेगा।”


 
 

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