नोटबंदी वाले साल में 88 लाख करदाताओं ने नहीं भरा IT रिटर्न 

Shruti Dixit  Thursday 4th of April 2019 12:55 PM
(12) (3)

नोटबंदी के साइडइफेक्ट्स

नई दिल्ली जिस साल नोटबंदी हुई, यानी वित्त वर्ष 2016-17 में 88.04 लाख करदाताओं ने इनकम टैक्स रिटर्न नहीं दाखिल किया था। यह इसके पिछले वित्त वर्ष 2015-16 में 8.56 लाख रिटर्न न फाइल करने वाले टैक्सपेयर्स की तुलना में दस गुना ज्यादा है। कर अधिकारियों के मुताबिक साल 2000-01 के बाद पिछले करीब दो दशकों में यह सबसे ज्यादा डिफॉल्ट है।

हालांकि, पिछले सालों में टैक्स रिटर्न फाइल न करने वालों की संख्या लगातार घटी हैं। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, वित्त वर्ष 2013 में ऐसे 37.54 लाख डिफॉल्टर की तुलना में वित्त वर्ष 2014 में 27.02 लाख, वित्त वर्ष 2015 में 16.32 लाख और वित्त वर्ष 2016 में 8.56 लाख रही। इनकम टैक्स विभाग के कुछ अध‍िकारियों ने स्वीकार किया कि नोटबंदी के बाद आर्थिक गतिविधियों में कमी की वजह से लोगों की नौकरियां चले जाने और आय में गिरावट की वजह से संभवत: इनकम टैक्स रिटर्न में कमी आई है।

इसी अखबार द्वारा जुटाए गए दस्तावेजों से पता चला है कि नोटबंदी लागू करने वाले साल में ही ‘स्टॉप फाइलर्स’ की संख्या में बड़े पैमाने पर वृद्धि हुई, जो कि पिछले चार सालों के ट्रेंड के बिल्कुल उलट था।‘स्टॉप फाइलर’ उन्हें कहते हैं जिन्होंने पहले के वर्षों में रिटर्न दाखिल किया था, लेकिन वर्तमान वर्ष में ऐसा नहीं किया, हालांकि ऐसा करना उनके लिए जरूरी था। खास बात यह भी कि इनमें वे करदाता शामिल नहीं हैं जिनका निधन हो चुका है या जिनके पैन कार्ड रद्द या सरेंडर कर दिए गए हैं।

अधिकारियों के अनुसार, नोटबंदी के जरिए 500 रुपये और 1,000 रुपये के पुराने नोटों को बंद करने के बाद आर्थिक गतिविधियों में गिरावट के कारण नौकरियों में कमी या आय में कमी स्टॉप फाइलर की वृद्धि का कारण हो सकता है। एक अधिकारी ने नाम न लिखने की शर्त पर कहा, ‘‘आमतौर पर, स्टॉप फाइलरों की संख्या अनुपालन और प्रवर्तन के अंतर को दर्शाती है, जिसे कर प्रशासन लागू करने में विफल रहता है लेकिन 2016-17 के लिए स्टॉप फाइलरों में इस भारी वृद्धि को अनुपालन व्यवहार में अचानक बदलाव के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। इस वर्ष के दौरान आय में गिरावट या नौकरियों की हानि के कारण ये वृद्धि हो सकता है।’’

इस पर बोलते हुए, केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने कहा कि बड़ी संख्या में ऐसे व्यक्ति हैं, जिनके मामले में टीडीएस/टीसीएस काटा गया है, लेकिन जो रिटर्न दाखिल नहीं करते हैं, ऐसे अधिकांश व्यक्तियों की कर योग्य आय नहीं है। साथ ही ऐसे करदाताओं का आकलन वर्षवार विश्लेषण और विभिन्न आकलन वर्षों में उनकी संख्या में किसी भी असामान्य भिन्नता के कारणों के लिए कुछ और समय की आवश्यकता होगी। अधिकारियों का यह भी कहना है कि साल 2016 में टैक्स बेस, टैक्स्पेयर, न्यू टैक्सपेयर आदि की परिभाषा में केंद्रीय प्रत्यक्ष बोर्ड द्वारा कुछ बदलाव किए गए थे और इसी वजह से साल 2016-17 में टैक्सपेयर बेस में 25 फीसदी का उछाल आ गया था।

इसके पिछले तीन साल में भी टैक्सपेयर बेस में सालाना करीब 18 फीसदी की बढ़त हुई थी। अप्रैल 2016 में सीबीडीटी ने टैक्सपेयर की परिभाषा बदलते हुए उन लोगों को भी टैक्सपेयर बेस में शामिल कर लिया था, जो वित्त वर्ष  के दौरान टीडीएस या टीसीएस (टैक्स कलेक्टेड ऐट सोर्स) के द्वारा कर का भुगतान कर चुके हैं।


 
 

रिलेटेड

 
 

अपना कमेंट यहाँ डाले